जंगिड्मणी

ब्राह्मण वंशोतिवृतम ग्रन्थ के 118 पृष्ठ के अनुसार अथर्ववेद के दो सूक्तो के ऋषि जंगिड ने जांगल देश मे तप किया था | इसी जांगल के कारण अंगिरा ऋषि का एक नाम जांगिड पडा।

दिसम्बर 24, 2021 - 00:59
दिसम्बर 24, 2024 - 00:59

अथर्ववेद 2-4 मे "जंगिड्मणी"  का भी उल्लेख आया है। जंगिड या जांगिड शब्द वैदिक है अथर्ववेद 2 व 19 वे काण्ड मे इसका प्रमाण देखा जा सकता है।
इसमे जंगिड का अर्थ जांगिड्मणी औषधि, परब्रह्म ओर एक ऋषि का नाम बोध होता है।
ब्राह्मण वंशोतिवृतम ग्रन्थ के 118 पृष्ठ के अनुसार अथर्ववेद के दो सूक्तो के ऋषि जंगिड ने जांगल देश मे तप किया था |  इसी जांगल के कारण अंगिरा ऋषि का एक नाम जांगिड पडा।
परशुराम शास्त्री के यह अवधारणा सही भी हो सकती है क्योंकि सायणाचार्य ने जांगिड के स्थान पर जंगिल शब्द का प्रयोग किया है।
"विबाध उग्रो जंगिल: परिपण: सुमंगल:।(अ. व. १८,३४,९)
वैसे एक शब्द के अनेक अर्थ होते है जिस प्रकार-
1.अथर्ववेद के 2/4 काण्ड में "जंगिड्मणि मन्त्र" का वर्णन है कौशक सूत्र 5/6 के अनुसार जो यज्ञ मे बालक की भुजा पर बांधी जाती है।
2. अथर्ववेद के 19 वे काण्ड मे जांगिड का अर्थ औषधि ओर परब्रह्म दोनो प्रतिपादित किये है।
3. इसके अतिरिक्त जंगिड अर्थात अंगिरा नाम के ऋषि जो अथर्ववेद के 19 से 34 सूत्रो के ऋषि हुए है का अर्थ बोध होता है।

"अंगिरा असि जंगिड"

अथर्ववेद का 19 से 340 अर्थात,हे अंगिरा तेरा ही नाम जंगिड है, या हे जंगिड तेरा ही नाम अंगिरा है। 
यह उल्लेखनीय है कि महर्षि अंगिरा ने आश्रम जांगल प्रदेशो मे थे जो वनस्पति से आच्छादित थे ये, ऋषि,वेदर्षि ज्ञान विज्ञान मे प्रवीण होने के कारणा साथ-साथ आयुर्वेदाचार्य भी थे वनस्पति विज्ञान के आचार्य इन वनो वृक्षो की पत्तियों लकडियों और छाल आदि से असाध्य से असाध्य रोगों का उपचार कर ईश्वर,जीव और प्रकृति ये तीनो स्वयंभू और अनादि-अनन्त है।-महर्षि अंगिरा रोगियों को रोग मुक्त कर दिया करते थे जिस वृक्ष की पत्तियों और छाल का उपयोग करते थे | अथर्ववेद मे जंगिड्मणि के रुप उसका नाम उल्लेखित है | जंगिड सामयिक वैधक ग्रन्थों के नाम वर्णित नही है। सायणाचार्य ने अथर्वभाष्य मे केवल इतना ही लिखा है कि

"उत्तर देशे जंगिड वृक्ष विशेष: जंगिड"

वृक्ष क्या है यह आयुर्वेद विज्ञान मे शोध का विषय रहा है? फिर भी मंथन करने से यह ज्ञात होता है कि ब्रह्मर्षि अंगिरा जिन्हे विजेता के रुप मे ऋषियों ने जंगिड(जांगिड)नाम से सम्मानित किया जो कालान्तर मे उनका एक स्थापित नाम प्रचिलत हो गया।
जंगल(जांगल) क्षेत्र मे ऋषि के जो आश्रम स्थापित थे वहां के वनो के वृक्षो की औषधि सेवे असाध्य रोगों के निदान मे निपुण थे, ऎसे वृक्षो की बहुतायत थी कालान्तर मे उनके नाम का पर्यायवाची बन गये, जिसे अथर्ववेद मेजंगिड्मणि कहा गया है यह वृक्ष कोई और नही जिसे हम अपने प्रान्त मे अर्जुन वृक्ष से परिचित है, जिसकी छाल पत्तियां आदि असाध्य रोगों की अचूल औषधि है। पुराणों के अनुसार अंगिरा स्वयंभू ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों मे से एक सम्माननीय नाम है।

मरीचिरात्र भर्गवानगिरस: पुलह:क्रतु:।
पुलस्त्यरच वशिष्ठ रच सप्तैते ब्राह्मण सुता:॥

 पारसियों के धर्म पुस्तक जन्दावस्ता अर्थात छ्न्दवेद गाथा मे अंगिरा की प्रशंसा करते हुए अंगिरा को अथर्व का ही वाचक कहा गया है। अथर्वागिरसोमुखम (अथर्व)  ब्रह्मा के अंगो का रस हिने के कारण अंगिरस कहलाये ।
ब्रह्मा ने तपस्याकरती समय अंगारों मे दूसरी आहूति दी तो एकत्रित अंगार मानव अवयवों से तेज: पुंज पुत्र अंगिरा का जन्म हुआ। तपस्या की अग्नि से उत्पन्न तेजस्वी अंगिरा को ब्रह्मा ने अग्नि देव से अपने लिये मांग लिया।
अंगिरा ने सर्वप्रथम अग्नि का आविष्कार किया उस समय उष्मा क एक मात्र साधन सुर्य था। ऎसे समय पृवी पर अग्नि का आविष्कार मनुष्य की प्रकृति पर प्रथम विजय सर्वाधिक महत्व की घट्ना थी। ऋग्वेद के 6/16/13 के कथनानुसार-

"त्वमग्ने पुष्करादध्य थर्वा निरमन्त"।
मूर्ध्ना विश्वस्त बाधत: ||"

अंगिरा ने मन्थन कर अग्नि को प्रकट किया।