देव शिल्पी (तकनिशियन) भगवान विश्वकर्मा

ब्रह्मणा शालां निमितां कविभिर्निमिता मिताम। इन्द्राग्री रक्षतां शालाममृतौ सोम्यं सद:॥

दिसम्बर 23, 2024 - 23:11
दिसम्बर 23, 2024 - 23:12
देव शिल्पी (तकनिशियन) भगवान विश्वकर्मा

देव शिल्पी (तकनिशियन) भगवान विश्वकर्मा

जाँगिड अथर्ववेदी ब्राह्मण है। अथर्ववेद सभी शिल्पियों का वेद है। यज्ञ मे सबसे बडा अधिकारी ब्रह्मा कहलाता है और यज्ञ का ब्रह्मा अथर्ववेदी ब्राह्मण होता है।
अथर्व केवल शिल्प वेद ही नही है बल्कि ब्रह्मावेद भी है। अथर्ववेद काण्ड १० सूक्त ८ महासूक्त है जिसके पहले मंत्र मे ब्रह्मा को नमस्कार किया गया है।

यो भूतं च भव्यं सर्व यश्चाधितिष्ठति।
सर्वयस्य च केवलं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणो नम:॥

यज्ञ के ब्रह्मा को ब्रह्म का ज्ञान तो होना ही चाहिये अन्यथा ब्रह्म कैसा? अथर्ववेद भी कहता है कि अंगिरा और जंहिड दोनो एक है। अत: अंगिरा संतान है। शिल्पी होने के नाते विश्वकर्मा संतान भी है।
 हमे यह भी जानना आवश्यक है कि संतान दो प्रकार की होता है, एक पुत्र दूसरा शिष्य सृष्टिकर्ता निराकर विश्वकर्मा जगत पिता है वही ब्रह्मा का सगुण रुओ भी है। जिन को ब्रह्मा विश्वकर्मा ने अथर्ववेद का ज्ञान सृष्टि के आदि मे दिया था।
यस्याहयो अपातक्षन यजुर्यस्मादपाकम।
सामानि यस्य लोमान्यकर्वाडिर्सो मुखं तं ब्रूहि कतम:सिवदेव स:॥

अत: विश्वकर्मा तथा अंगिरा वंशी (पुत्र एवंशिष्य) ब्राह्मण को शिल्प और ब्रह्म दोनो का ज्ञान होना चाहिये यह बात कठोपनिषद १,१,१५,से स्पष्ट होती है-
लोकादोमाग्रिं तमुवाच तस्मै या इष्ट्का यवतीवां यथा वा स चापि तत प्रत्यंवदत यथोक्तम........॥
अर्थात उस समय वैद्वस्वत (यम०ने लोक के आदिकाल अग्रि यज्ञ को उसे जैसी (नाचिकेता) को कहा बताया। उस अग्रि के लिये जो जितनी ईटें व समिधाएं चाहिए यह भी बताया। नचिकेता ने भी जैसा उसे बताया गया था वैसा दुहरा दिया। यह यज्ञ विधा पंचाग्रि विधा है जो यम के आशीर्वाद अनुसार नाचिकेताग्रि भी कहलाई।
यह विधा तो अब लुप्त हो चुकी हैकिंतु इस से यज्ञ के बारे मे एक बात स्पष्ट हो जाती है। यज्ञ दो रुप है एक ब्रह्मारुप जो वेद मंत्रो से सिद्ध होता है दूसरा भौतिक और दैवी रुप जो शिल्प से सिद्ध होता है।
            किस यज्ञ मे कैसी ईटें चाहिए कैसी वेदी बनानी चाहिए यह बात को नही जान सकता दूसरे कौन से यज्ञ मे किस अर्थ के लिये कैसी समिधा और क्या सामग्री चाहिये यह बात भी वैज्ञानिक(शिल्पी) ब्राह्मण जान सकता है।
वास्तव मे वेद तो स्वयं सब सत्य विधाओं का ज्ञान है अर्थात सांइस (विज्ञान) टेक्नोलोजी(शिल्पी) और अध्यात्म विधा। वेद का विद्वान केवल यह है जिसे सांइस टेक्नोलोजी और ब्रह्र्म तीनो का ज्ञान हो अन्यथा वह यज्ञ की सिद्धि नही कर सकता।
महर्षि पाणिनि ने तो अष्टाध्यायी के अन्दर यज्ञ सबंधी ईटों के नाम दिये है। अब अथर्ववेदी यज्ञ ब्रह्मा से आगे चले। जैसे-जैसे यज्ञ विधा का विकास हुआ यज्ञ संबधी शिल्प का भी विकास हुआ अत यज्ञ के दो भग हो गये एक पूर्व भग अर्थात ईटें मसाला जुटाना वेदी बनाना मंडप तैयार करना सामग्री संकलन इत्यादि यह हो गया आधिभौतिक भाग।
दूसरा भाग अधिदैविक और आध्यात्मिक जि वेद मंत्रों से सिद्ध होता है वह यज्ञ का उत्तर भाग है।
समय बीतता गया और हुआ यह कि वेदी बनाने के लिये शिल्पी जाने लगा और यज्ञ के लिये मंत्र पाठी। आगे चलकर शिल्पी मिस्त्री बन गया और मंत्रपाठी ब्राह्मण। मिस्त्री को मिलती है तनख्वाह दिहाडी मजदूरी। ब्राह्मण को मिली दक्षिणा और दक्षिणा लेने वाले तो दो ब्राह्म्ण भी इकठे नही बैठ सकते । अतं मे ब्राह्म्ण ने शिल्प छोड दिया और ब्राह्मण से पुजारी और श्राद्ध भोगी हो गया और शिल्पी ने पढना छोड दिया। पढना छोड कर मजदूर हो गया ।
 आज भी सब मकान बनता है तो उस की नीव शिल्पी (मिस्त्री) ही धरता है और उसे दक्षिणा मिलती है। शाला निर्माण यज्ञ है और इस का ब्रह्म आज भी शिल्पी है चाहे वह आर्कटेक्ट हो चाहे मिस्त्री। और इसी बात का एक ऎतिहासिक प्रमाण भी है। एक प्राचीन ग्रन्थ है श्री विश्वनाथ रचित साहित्यदर्पण जो लगभग एज हजार वर्ष पुराना तो ह्प्गा ही ग्रन्थ मे उदाहरण रुप मे एक पंक्ति आती है जो ध्यान देने योग्य है ब्राह्मणपि तक्षासौ अर्थात वह ब्राह्मण है और लकडी का काम करता है। अन्तर पिछ्ली कुछ शताब्दियों से ही आया है।

शाला निर्माण हेतु यज्ञ का ध्यान आते ही स्वामी दयानन्द कृत अमर ग्रन्थ संस्कर विधि का ध्यान आया। वैदिक यंत्रालय अजमेर मे सवत 2003 वि. मे. छ्पी संस्कार विधि के पृष्ठ 218 पर अथर्ववेद काण्ड 9 सूक्त का मंत्र 19 मिला। पढ्कर कुछ देर के किये मै तो मानो ध्यानवस्था मे चला-गया किसी खोये हुए समय की गहराई मे 1 मंत्र यह है-

 ब्रह्मणा शालां निमितां कविभिर्निमिता मिताम।
इन्द्राग्री रक्षतां शालाममृतौ सोम्यं सद:॥

अर्थ- स्वरुप से नाशरहित (अमृतो) वायु और अग्रि (इन्द्राग्री) उत्तम विद्वान के द्वारा(कविभि) प्रमाणयुक्त अर्थात माप मे ठीक जैसी चाहिये वैसी (मिताम) शाला को (शालाम) और चारों वेदों के जाननेवाले विद्वान शिल्पी के द्वारा बनाई गई(ब्रह्मण निमिताम) शाला को ९ शालाम० प्राप्त होकर रहने वालों की रक्षा करें(रक्षताम) मंत्र का संकेत स्पष्ट है ।
 शाला का निर्माण करने वाला ब्राह्मण है और कवि है।कि कवि का अर्थ है वह व्यक्ति जिस की दृष्टि सीधी सच्ची और सूक्ष्म है कवो पारदर्शी होता है और ब्राह्मण परिदृष्टि और ब्रह्रादर्शी होता है।
कवि और ब्राह्मण जब मिलते है तो सत्यम शिवम सुन्दरम के मूर्त्तरुप का निर्माण करते है। ऎसी ही सुन्दर शाला की कल्पना अर्थर्ववेद मे की गई है। हमारे प्राचीन साहित्य मे जिन सुन्दर भवनो और नगरोंकी कल्पना की गई है वे सभी कल्पनाएं और उनके साकार रुप भगवान विश्वकर्मा और उन की सन्तान की ही तो देन थे।
स्वामी दयानन्द ने शाला निर्माण के प्रकरण मे एक औए मंत्र को लिया है जिसका अर्थ उन्होने इस प्रकार दिया है मनुष्यों को योग्य है कि जो कोई किसी प्रकार क घर बनावे तो वह सब प्रकार की उत्तम उपमायुक्त कि जिस को देख कर विद्वान लोग सराहना करें प्रतिमान अर्थात एक द्वार के सामने दूसरा द्वार कोणों और कक्षा भी सम्मुख हों इस के अनन्तर वह शाला चारों ओर के वायु को स्वीकार करने वाले हो उस के बन्धन और चिनाई दृढ हो।
हे मनुष्यों ! ऎसी शला को हम शिल्पी लोग अच्छे प्रकार ग्रंय्हित अर्थात बन्धन युक्त करते है। कैसे है ये शिल्पी लोग? ये देव शिल्पी है।
शाला का संबोधन करते हुए अथर्ववेद ९३,१२,५) मंत्र कहता है कि तू देवेभिर्मितासि अर्थात देव शिल्पियों ने तेरा माप तौल निर्माण किया है अत: तू रहने वाली हो।
देव शिलियों को मिमित्त बनाकर भगवान ने मनुष्य को यह आशीर्वाद दिया है। देव कौन है? जो देता है। सत्यार्थ प्रकश के सतवें समुल्लास मे तैतीसं देवताओं की और एक परम देव ईश्वर की चर्चा करते हुए स्वामी दयानन्द ने शिल्प को यज्ञ कहा है और सतपथ ब्राह्मण(काण्ड १४ प्रपाठक५ ब्राह्मण ७कण्डिका४) का हवाला देते हुए यज्ञ को प्रजापति कहा है कि जिस से वायु वृष्टि जल औषधि की शुद्धि विद्वानों का सत्कार और नाना प्रकार की शिल्प विधा से प्रजा का पालन होता है।अत: सतपथ ब्राह्मण और ऋषि दयानन्द के आधार पर शिल्प यज्ञ है और यज्ञ होने के नाते प्रजापति है।
उपनिषद मे विश्वकर्मा को प्रजापति कहा है अथर्ववेद ९९,३,११) मे निर्माणकर्ता शिल्पी को प्रजापति कहा है। हमे ध्यान से अथर्ववेद काण्ड९ सूक्त ३ और काण्ड ३सूक्त १२ का अध्ययन करना चाहिए जह पर शिल्पी के लिए ब्राह्मण ९९.३.१९.९.३.८)
सविता इन्द्र वायु बृहस्पति (३,१२,४) प्रजापति(३,९,११) और देव(३,१२,५) शब्दोंका प्रयोग किया गया है।
ये शब्द अन्यत्र ईश्वर और प्रकृति की दैवी शक्तियोंके लिये भी आये है किंतु इस लेख के संदर्भ मे ये शब्द शाला-निर्माता शिल्पी के लिये ही किये गये है। जागिड अथर्ववेदी ब्राह्मण है। अथर्ववेद सभी शिल्पियों का वेद है। यज्ञ मे सबसे बडा अधिकारी ब्रह्मा कहलाता है और यज्ञ का ब्रह्मा अथर्ववेदी ब्राह्मण होता है।