विश्वकर्मा जी

१. भगवान विश्वकर्मा विश्व का निर्माण करने वाले स्वयंभू शिवरुप ज्योतो स्वरुप है। २. विश्वकर्मा आदि का; से है और अनादिकाल तक रहेगें। ३.त्रिगुणात्मक विश्वकर्मा सब बीजों के बीज है सब सारों का सार है। ५.सर्वप्रथम ब्रह्मरिस ऎसा घोर नाद उठा जो ब्रह्मरुप हुआ। उसका विराट रुप हुआ। उसके सहस मुख,नयन,हाथ,पद चरण आदि असंख्य रुप का वर्णन वेदों मे किया गया है।विश्वसन चक्षु,विश्रतों मुख विश्वतों बाहु विश्वपद और मस्तक और विराटरुप विश्वकर्मा का है।

दिसम्बर 23, 2024 - 21:38
दिसम्बर 23, 2024 - 21:39
विश्वकर्मा जी

विश्वकर्मा जी


१. भगवान विश्वकर्मा विश्व का निर्माण करने वाले स्वयंभू शिवरुप ज्योतो स्वरुप है।

२. विश्वकर्मा आदि का; से है और अनादिकाल तक रहेगें।

३.त्रिगुणात्मक विश्वकर्मा सब बीजों के बीज है सब सारों का सार है।

५.सर्वप्रथम ब्रह्मरिस ऎसा घोर नाद उठा जो ब्रह्मरुप हुआ। उसका विराट रुप हुआ। उसके सहस मुख,नयन,हाथ,पद चरण आदि असंख्य रुप का वर्णन वेदों मे किया गया है।विश्वसन चक्षु,विश्रतों मुख विश्वतों बाहु विश्वपद और मस्तक और विराटरुप विश्वकर्मा का है।

६. विराट आत्मा हिरण्यगर्भ है उसके नाभि स्थान पर आकाश है\ वहां ब्रह्मदेव है जो संसार की उत्पति करते है। जिसमे कश्यप आदिपैदा हुए है विराट्का मुख अग्नि है, हाथ इन्द्रियगण है, विराट के चरण त्रिविक्रम है, दिशाये उनके कान है, वायु त्वचा है, जो ब्रह्म आवरण है,सूर्य चक्षु है, वरुण जिव्हा है,अश्विनदेव नासिका है, माया अन्तकरण है, लक्षचन्द्र उसका विशाल मन है, जो मन और महेश्वर हुआ। इस प्रकार विराट स्वरुप विश्वकर्मा जी का है।६. विश्वकर्मा जी ने सर्वप्रथम प्राणवायु उत्पन्न की बाद मे मन और सब इन्द्रियां प्रकाश वायु तेज पानी और प्राणीमात्र को धारण करने वाली पृथ्वी का निर्माण किया।७. विश्वकर्मा ने ब्रह्मा प्रजापति रुदे और नारायण की उत्पति की। उन्होने अनेक प्रजापति उत्पन्न किये है तथा करते जा रहे है।ब्रह्मा विष्णु,महेश और सावत्री लक्ष्मी तथा पार्वती की उत्पत्ति विश्वकर्मा ने करके उनके यथायोग्य विवाह तय किये। उन्हे उत्पत्ति रक्षा और संहार ९प्रलय) के कार्य सौपें।

८. विश्वकर्मा ने बारह सूर्य, ग्यरह रुद्र,आठ वसु सब देवता,सब ऋषि वेद के सारे छ्न्द औत प्राणी मात्र उत्पन्न हुए है। उनसे ही सारी सृष्टि प्रकट हुई है। उसकी वृद्धि हो रहा है, पोषण हो रहा है, और अन्त मे विश्वकर्मा के निज स्वरुप मे ही लीन हो जाते है।।

९. श्लोक -
"विश्वकर्मण ऎवेद सर्व,"यदभुत तश्यमेव्यम अर्थात जो बना है वह विश्वकर्मा रुप है तथा भविष्य मे जो होगा वह भी विश्वकर्मा का ही रुप होगा।

१०. पृथ्वी से पांच वस्तुएं नुकली है।
१.वनस्पति९जंगल० २.खनिज ९लोहा)३. खनिज(ताम्बा,जस्ता)४.शिला(पत्थर)५. सोना-चाँदी।

उपलब्ध वस्तुओं का कार्य करने वाले पांचाल होते है। अज्ञानवश इन लोगो मे अपनी अलग-अलग जातियां मान ली है। विश्वकर्मा जी के पाँचों मुख से मनु मय त्वष्टाशिल्पी और देवज्ञ उत्पन्न मानस पुत्र है तथा शिल्प कर्मी ऋषि है।

११. इन पाँचो के अलग-अलग वर्ण और इष्ट कुण्ड है।।
१.मनु-सफेद उल्टा त्रिकोणकृति कुण्ड
२.मय- नीला चौकोर आकृति
३.त्वष्टा-लाल गोलाकार
४शिल्पी-हरा षटकोणाकृति
५.देवज्ञ-पीला अष्टकोणाकृति
इनकी पताकाओ की साईज(३३*२५०(२३*१५)(१९*११) इंच है।

१२.विश्वकर्माजी का चिन्तनस्वरुप-तेजयुक्त ऋषियों(कश्यप) अत्रि भारद्वाज विश्वमित्र,गौतम,वशिष्ठ जमद्ध्ग्नि) ने स्तुति मे बतलाया है कि विश्वकर्मा के पाँच मुख है ,दस भुजायें है वे सैदेव उनके चरणो मे रहती है। सूतजी कहते है कि विश्वकर्मा का चिन्तन पूजन करने के पहले पार्वती जी के पूछ्ने पर महादेव ने यह वर्णन किया है कि जो सूतजी को कहा थ तथा सूतजी ने बाद मे जब ऋषियों को बतलाया था।।

१३.अंको का गणित-इकाई दहाई से लगाकर परार्थ तक १९ प्रकार के अंको की गणना विश्वकर्मा जी ने ही की है। इनके उदाहरण है-।

अ. सरकारों की योजनाओं की लागत करोड अरब खरब,तक,होती है।
२.श्री राम जी की सेवा मे अठारह पदम वानर थे।
३.पाण्डवो ने अपनी सम्पति क आँकडा कोटि पदार्थ बतलाया जो जुए मे हार गए थे और जिस्के बद द्रोपदी की दांव पर लगाया था।(सांख्य शास्त्र से)

१४. तिथि बार नक्षत्र की गणना-।

मनु ने तिथि की मय ने वार कीत्वेष्टा ने नक्षत्र की शिल्पी ने योग की और देवज्ञ ने करण की गणना की इस प्रकार चैन्य पंचांग की गणना करके देवों के उपाध्याय(गुरु) का कार्य किया।(मूल्स्तम्भ से)
१५. विश्वकर्मा ने सब देवों को उनके अधिकारो के अनुसार लिंग प्रदान किये और पूजाविधि समझाई(शिवपुराण)।

१६.विश्वकर्मा ब्राह्मणों के १६ कर्मविधि-।

स्नान संध्या जप,तप,हिम,हवन,यज्ञोपवित्सोका (पावित्र,स्नान० उपनयन(मिंडन) श्राद्ध वेद अध्यन वेद अध्यापन ,फलदान,पुष्यावृत,सन्तपूजन और जातिकर्म(नागर खण्ड से)

१७.भगवान विश्वकर्माजी के शस्त्र-।

१.कुदाल-सारी पृथ्वी को जलाकर उसकी महापंच भूति की मिटी का निर्माण करने वाला यंत्र कुदाल,
२. फावडा-पंच भूत की गीली मिट्टीएकत्र करने का यंत्र
३.तासणी-(वाकस)-विषम भव नष्ट करके समभाव निर्माण करने वाला य्न्त्र तासणी है
४.घटिका यन्त्र-समय की प्रतिक्षा करने वाला घटिका यन्त्र।
५.कनण्डल(करणी०-पंचभूत की मिट्टी की पिण्डीकरण(गोला)करके जिससे लिया जाता है, वह करणी है।
६.मेरु पर्वत-वैराग्य वृति जिससे पाप जन्का नाश किये जाते है और अध्यात्म विधा का मार्ग दिखाया जाता है, मेरु पर्वत।
७.टांकी (छेनी) पंचभूत से देव निर्माण करने वाला हथियार टांकणी(छेनी)है,
८.संडासी(चिमटा)- अज्ञान को नष्ट करने के लिये ज्ञान रुपी संडासी का उपयोग किया जाता है।
९.धमनी(फूंकनी) फूँक मारकर सृष्टि की रचना की और उसमे प्राणवायु उत्पन्न की।
१०.अग्नि-क्रोधायमान स्थिति का नाश करने के लिये अग्नि है। १८. भगवान विश्वकर्मा के अवतार-(मूल्स्तम्भ्से)।

१.सतयुग मे मनु आदि सब देवों द्वारा विराट परमेश्वर से प्रार्थना करने पर जन कल्याण के लिये मार्ग शीर्ष शुद्ध १०.शुक्रवार रेवती नक्षत्र शुभलग्न और अभिजीत मुहूर्त पर११.३०से १२.३० के बीच अवतार लिया।
२. काशी विश्वेश्वर की आज्ञा से माघ सुदी१३ को शुभ अवसर पर इन्द्रकील पर्वत पर प्रकट हुए।
३. स्थावर जंगल के अधिपत्ति विश्वकर्म कार्तिक शुद्ध १५ के शुभ अवसर पर प्रकट हुए।
४. चदाचर अधिपति एक मुखी विश्वकर्मा कार्तिक शुद्ध ११ के शुभ मुहूर्त पर प्रकट हुए।
५. शिवस्वरुप विश्वकर्मा का पूजन करने का प्रथम अवसर हम पौरुसेय ब्राह्मणों को मिलता है। माघ सुदी१३ को हम विश्वकर्मा के शिवरुओ का पूजन करते है तथा उसके १५ दिन बाद आनेवाली कृष्ण पक्ष की १३ को महाशिवरात्रि पर अन्य आश्रेय ब्रह्मण पूजा करते है। पुरुषार्थ करके जीवन यापन करने वाला पौरुसेय और दूसरों पर आश्रित रहने वाला आश्रेय ब्राह्मण कहलाता है। उपरोक्त मुख्य-मुख्य आवश्यक जानकारी श्री पाण्डुरंग एकनाथ खैरनार गुरुजी,निवासी.बडाली,भोई,तहसील,चांदवाड जिला नासिक (महाराष्ट्र) द्वारा प्रकाशित पुस्तक "विश्वकर्मा महात्म्य व वास्तु शास्त्र" जो मराठी मे है, से ली गई है। इच्छुक महानुभाव उनसे सम्पर्क करके अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते है।
-राजाभाऊ गोधने