आज के विश्वकर्मा
श्री राम सुथार, महाराष्ट्र के धूलिया जिले में जन्मे, एक प्रसिद्ध शिल्पकार थे जिन्होंने अजन्ता और एलिफेंटा की मूर्तियों के संरक्षण का कार्य किया। उन्होंने 45 मीटर ऊँची चम्बल की प्रतीकात्मक मूर्ति बनाई, जो मध्यप्रदेश में गांधी सागर बांध पर स्थापित की गई। दूसरी ओर, श्री पी.एल. मिस्त्री, जिन्होंने 52 मानवोपयोगी यंत्रों का आविष्कार किया, एक उत्कृष्ट इंजीनियर थे। उनकी कारीगरी और यांत्रिक आविष्कारों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया, और उनकी उपलब्धियों को कई जगहों पर प्रदर्शित किया गया।

आज के विश्वकर्मा
महराष्ट्र के धूलिया जिले मे जन्मे पह्मश्री रमसुतार(शिल्पकार) अजन्ता एलिरा के शिल्पकर की स्मृति मे बनाई मूर्ति के साथ श्री राम सुथार जी महाराष्ट्र के धूलिया जिले के एक गांव गोंडूर मे १९ फरवरी १९२५ को श्रीभवान जी हंसराज सुतार के यहां हुआ नामकरण समारोह बडी धूम धाम्से हुआ नाम रखा राम राम का बचपन बहुत गरीबी मे बीता इनके अन्दर छिपी प्रतिभा को पहचानना इनके गुरु श्री राम कृष्ण जोशी जी ने उनकी प्रेरणासे ही मुबंई के जे.जे स्कूल मे एशमीशन लिया।
वहां हर बार प्रथम आते रहे और स्टोन मारबल तथा कांसे की मूर्ति कलाओं की बारीकियां अपने अध्यापकों से जानी तथा सीखी इसी कारण आपको इस परीक्षा मे गोल्ड मैडल मिला।
आपने पढाई के बाद १९५४ से ५८ तक अर्चेओलोजी डिपार्टमेन्ट मे रह अजन्ता और एलिरा मे कई मूर्तियों के स्वरुपों के संरक्षण का कार्य किया। १९५८से५९ तक आडियो-विजुअल पब्लिसिटी डिपार्ट्मेन्ट मिनिस्ट्री आफ इनफारमेशन अण्ड ब्रोडकास्टिगं नई दिल्ली मे टैक्नीकल एसिराटैन्ट (मोडेल) एक्जीबीशन डिविजन मे रहे।
१९५९ मे इन्होने निर्णय लिया कि अब स्वतंत्र रुप से अपनी मूर्ति कला प्रतिभा द्वारा अनूठी कलाकृतियां बनायी है। आपने ४५ मीटर ऊची चम्बल की प्रतीकात्मक मूर्ति का निर्माण किया इससे मध्य प्रदेश तथा राजस्थान का बान्धुत्व भी छ्लवाया पूरी मूर्ति एक ही पत्थर को तराशकर बनाई।
जो गांधी सागर बांध पर लगाई गई है। पुरस्कार १९९३ मेपह्म श्री गोल्ड मैडल जे.जे स्कूल आफ आर्टस मुबंई ३ पुरस्कार मुबंई आर्ट सोसायटी १९७५ मे महात्मा गांधी की पोरटेड कम्पटीशन के पुरस्कार साहित्य कल परिषद द्वारा पुरुस्कृत इसको देख देश के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु ने संकल्प लिया ५० फीट की ऎसी दो प्रतिमाए गंगा तथा यमुना पवित्र नदियों की मूर्तियां पंजाब क रोज गार्डन लुधियाना तथा मण्डी गोवोन्द नगर मे लगी।
फरीदाबाद(हरियाणा) के बडकल लेक शेड पर सूरजकुण्ड मे " मूर्तियां के बाग मे आनन्दवन मे कई कलाकृतियां बना लगाई है। इनकी कलाकृतियों को राष्ट्रीय तथा अन्तराष्ट्रीय प्रदर्शनीयों मे बहुत सराहना मिली। महात्मा गांधी जी के रोज समारोह के लिए आयोजित प्रतियोगिता मे बनाई इनकी कृति पुरस्कृत हुई और फिर वे मूर्तियां समस्त विश्व मे
(रसिया इग्लैण्ड,मलेशिया,फ्रांस. इटली,अर्जेन्टीना,बारबाडोस,काराकस,आदि मे) लगी है। इस पत्रिका के आवरण पृष्ठ पर ही महाराजा रणजीत सिंह जी की मूर्ति रामबाग अमृतसर पंजाब मे लगी है।
आपके द्वारा बनाई मूर्तियां संसद भवन तथा कई मन्त्रालयों मे लगी है। शायद ही कोई राष्ट्रीय नेता हो जिसकी मूर्ति इन्होने न बनाई हो। आजकल नौएडा के सेक्टर ६३ के इनके स्टूडियों मे" महाभारत मे अर्जुन को गीता उपदेश देते हुए कृष्ण भव्य तथा दिव्य रथ का ६ वर्ग फुट लम्बा ३५ फीट ऊंची कृति पर काम चल रह है। यह ज्योतिसर कुरुक्षेत्र मे शोभायमान होगा ।
२. आधुनिक विश्वकर्मा स्व. श्री पी.एल मिस्त्रे श्रीपी.एल मिस्त्री का जन्म १९१४ मे ग्राम तखतगढ जिला-पाली (राज.) मे हुआ एवं स्वर्गवास १९८१ मे आपने अपने जीवनकाल मे आश्चर्य्चकित कर देने वाले ५२ मानवोपयोगी यन्त्र व उपकरणों का आविष्कार किया जिसे देखकर अच्छे-अच्छे वैज्ञानिक और इंजीनियर दंग रह गये।
आइये इन्हे जानने के लिए हम२९ दिसम्बर १९७५ के राजस्थान पत्रिका मे प्रकाशित मूर्धन्य राष्ट्रीय स्तर के पत्रकार श्री कपूरचन्द कुलिश के लेख मे देखता चला गया
मै विश्वकर्मा से मिला इन्द्रलोक मे नही: मै विश्वकर्मा से मिलकर आया हूँ विश्वकर्मा से ही मिला हूँ आजकल उन्होने नाम शाम बदल लिया है।
नाम है पी.एल मिस्त्री धाम है, तखतगढ जिला पाली(राज.) काम वही है लेकिन बदल दिया है।
अब देवताओं का काम नही करता मनुष्य जाति के बीच आ गया उसने भी मिनखाजूण मनुष्य योनि धारण कर ली है। तखतगढ गया था वहां की पंचायत का काम देखने जो अब नगरपालिका बन गई है।
२० सूत्री कार्यक्रम के अन्तर्गत वहां ग्रामीण उधोग बस्ती बसाई जा रही है, उसी धरती पर मेरा विश्वकर्मा वास करता है।
जहां पी,एल मिस्त्री ने जन्म धारण किया है, वहां एक क्या अनेक उधोग बस्तियां बन सकती है। पैसा खरादें! चाय लें या काफी: लीजिए विश्वकर्मा का शोरुम आ गया।
सफेद धोती कमीज पहिने श्री मिस्त्री अपनी कुर्सी पर बैठॆ कोई ड्राईग देख रहे है। नगर पलिका अध्यक्ष श्री बंसीलाल ने मिस्त्री जी से मेरा परिचय करवाया। सबसे पहले इन्होने एक तुलने की मशीन दिखाई पुराने जमानेकी बात है इकन्नी डालो औए अपना तोल लो। खूबी यह है कि इस बात मशीन को आप चकमा नही दे सकते, खोटी इकन्नी डाल दो तो वापिस लौटा देगी। आपका चेहरा उत्तर जाएगा। मिस्त्री जी ने बताया जि कि बम्बई रेलवे स्टेशनों पर उनकी मशीने लडाई के जमाने से लगी हुई थे।
मिझे भी याद आया १९४८ मे इस तरह की मशीन पत इकन्नी डालकर बम्बई सैन्ट्रल अटशन पर तुला था मिस्त्री को अंग्रेजी ने कई मशीने बनाने का आर्डर दिया। था। लेकिन उनका राज जाते उन्हे देख उन्होने आर्डर मंजूर नही किया। मशीन हाथ की कारीगरी की बेजोड मिशाल थी।
सफाई कम्प्यूटर की सीधी क्या मजाल कि जाए या खोटी इकन्नी जाए अब वे चाय की टंकी की सामने लाए कंघे के बराबर ऊंची टंकी इसमे दूध पानी डाल दीजिए चाय या काफी अलग से पोटले बनाकर रख दीजिए नीचे स्टोव लगा है, जला दीजिए और देखिए मशीन का कमाल। स्स्धा दर्जन लीवर लगे हुए है, घुमाईए और चाय लीजिए दूध लीजिए काफी निकालिए यह मशीन भीहाथ की बनी हुई है। एक और बनाई है। जिसे तीस हजार मे बेच दी। इनके खरीददारी भी मौजूद है, लेकिन प्रोटोटाइप के तौर पर मिस्त्री जी ने शोरुम म्र रख छोडी है। कुर्सी बनाम टेबल पलंग :
अब जरा छोटी मोटी घरेलू काम की चीजों पर नजर डालिये । शोरुम मे क स्टील की कुर्सी रखी है। जैसे कि आजकल शादी-ब्याह मे टैन्ट वाले लगाते है। मिस्त्री जी बैठ गए। कुर्सी की पीठ पर हाथ चलाया ओय्र एक फ्रेम कुर्सी की सामने आ गया, उसी के नीचे एक स्टेण्ड लटक गया और जमीन पर टिक गया, इस तरह कि जिस तरह हवाई जहाज उतरते समय जमीन पर टिक गया किर्सी के आगे छोटी मेज फ्रेम पर उतर कर आई है। आप चाहे तो लिखने का काम कर सकते है। चाहे नाश्ता कर सकते है। काम करते-करते समय नींद आ गई हो तोआप वही पर सो सकते है। यह देखिए कुर्सी की आगे टिकी हुइमेज कुर्सी की पीठ एक दम जमीन पर फैल गई पलंग बन गया।
आप डनलप का छोटावाला बिस्तर फैलाईए और सो जाईये कुर्सी के पास ही स्टील का झूला रखा है, बच्चे को ऊंचा -नीचा करना हो तो वह विधि भी उसी मे लगी है। खटका दबाइये और बोतल खिलौने या नेपकिन वगैरह की गुंजाइश भी है। झूले को समेटकर हाथ मे लटकाकर ले जा सकते है। अब जरा अलमारी के पास चलिये। इसमे से पीतल के चार ड्ण्डे निकालिये जो पाइप के बने है। एक मे से एक पाइप निकालते जाइये और जोड्ते जाइये पूरा पलंग बन जाएगा बिस्तर बिछाइये और सो जाइये। बिना ईधन का इंजन: लेकिन यह तोकुछ नही। मिस्त्री जी कि लिए खिलौने है, हमारे किए बडे कौतुहल की चीजें है।
वे मुझे एक ककंरीट के प्लेट्फार्म पर ले जाते है जहां उस इंजन का मूल ढांचा रखा हुआ है। दिनियां मे तेल का संकट तो अब आया है।लेकिन मिस्त्री जर ने जाने कब से सोच रहे है। कि धरती पर एक न एक दिन ईधन का अकाल पैदा होगा। वे एक ऎसा इंजन बना रहे है। जिसे चलाने के लिए न बिजली चाहिए न तेल न गैस ६४ बाल बियरिगं १६ साइकिल के फ्राई व्हील औए चार गियर लगाकर व इंजन तैयार किया है, जिसमे और कई भी कलपुर्जे है। मैसे मिस्त्री जी से पूछा कि क्या यह मशीन ग्रेवोटी(गुरुत्वाकर्षण) के सिद्धन्त पर बनाईगई है उन्होने हा के लहजे मे सिर हिलाया। मै भी उनकी कारीगरी के बारे मे कुछ नही जानता अत:कुछ नही कर सकता किन्तु मिस्त्री जी ने यह जरुर कहा कि उन्होने पूरा इंजन बना लिया है मुझे जो दिखाया गया वह उसका मूल ढांचा है। बाद मे य्न्होने वास्तिविक इंजन के कलपुर्जे भी दिखाए जो उन्होने लपेटकर पेटियों मे बन्द कर रखा है। तेल ग्रीस लगा दिया है, क्रामियम करवाना चाहते है। क्या वे इस इंजन को बाजार मे निकालना चाहेगें । मिस्त्री जी ने कहा कि पहिले वे खिद काम मे लेगें तरह-तरह के कामों मे लगाने और रसल्ली हो जाने पर वे व्यापारिक तौर पर उसका उत्पादन करेंगें उन्हे पूरा विश्वास है कि इंजन चल निकलेगा। मिझे स्ट्रोक पकड लेता है और धीरे-धीरे शक्ति एवं वेग से चलने लगता है।
नक्शे और एलबल:- मिस्त्री जी के शोरुम मेकई नक्शे टंगे हुए है एक नक्शा उन्होने दुर्घटना रहित रेलगाडी काभी उपयोग बताया। उनका कहना है कि रेल दुर्घट्नाए और सडक दुर्घट्नार बचाई जा सकती है। पी.एल मिस्त्री के पास इनके डिजाईनों और नक्शों के एलबम भी पडे है। एक-एक मशीन एलबम होगा, और पांच किलो का जिसमे सारे मशीनी डिजाईन और ड्राईग इतने साफ सुथरे है कि अच्छे -२ इंजीनियर उनकी दाद दिए बिना नही रह सकते। सभी ड्जाईन पेटेन्ट करवाए गए है। अपनी आलमारे मे से निकालकर एक फिल्मी कैमरे के लैंस का फ्रेम बताया। उन्होने इसे हाथ से ही बनाया है। पूरा उपकरण बडी सफाई से खुलता है व बन्द होता है। एक -एक पत्ती हाथ से बनाकर जुडाई गई है। मिस्त्री जी के शोरुम मे एक लेय मशीन के सिवाय कोई मशीन नही है। जो शोरुम क्र साथ लगी हुई वर्कशाप मे पडी हुई है। शोरुम और वर्कशाप इतने आकर्षक ढं से बने हुए है। जैसे लगता है कि बम्बई या कलकता की किसी इंजिनियररिंग कम्पनी के शोरुम मे आ गए। य्हां भी डिजाइन पर म्स्त्री जी की अपनी छाप है। प्रेरणा की खिडकी:- पी.एल मिस्त्री संक्षेप मे अपना काम देखाने के बाद मिझे शोरुम के एक कोने मे ले गए। एक छोटी सी खिडकी खोली जिसमे हनुमान जी के दर्शन हुए। बडी सुन्दर और छोटी सी सुन्दर मूर्ति स्थापित कर रखी है। पास ही जोत जलती रहती है जिसमे निरन्तर तेल पहुंचने के लिए छोई सी टंकी रखी है। मिस्त्री जी ने श्रद्धानत होकर मुस्कराते हुए कहा कि जो कुछ है इनका है इनका दिया है, मै कुछ नही हूँ मेरा कुछ नही है।हनुमान जी ने मिस्त्री जी के कथन पर क्या सोचा यह तो मै भांप नही आया किन्तु मुझे इसमे एक गुणी मनुष्य की विनयशीलता ही दिखाई दी जो विधा के प्रभाव से पैदा होती है। नीतिज्ञों ने कहा है:- "विधा ददाति विनयम विनय ददाति पात्रम" अप्रैल १९७७ के "धर्मयुग मे मैन साधना की नयी मशीने और जन वैज्ञानिक " शीर्षक के उनका परिचय प्रकाशित हुआ। मिस्त्री जी ने एक चालीस मन की तिजोरी का निर्माण किशोरावस्था मे किया था। जिसमे गलत चाबी लगाने वाले का हाथ गिरफ्तार हो जाता था।