अन्गिरा ही जाँगिड
अंगिरा ने अपने विजय के आधार पर राजराजेश्वर इन्द्र का सम्मान प्राप्त किया। अत्याचारियों का दमन कर प्रजा की रक्षा करने वाले इस संत एंव वीरवर ऋषि की अथर्ववेद काण्ड 19 सूक्त 34-35 के अनेक मन्त्रों मे अधिक प्रशंसा हुई। इन्द्र्स्य नाम ग्रहणन्तृषियों जंगिड दद:। देवा यं चकुर्भेषजमग्रे विष्कन्धदषणम॥

अंगिरा ने अपने विजय के आधार पर राजराजेश्वर इन्द्र का सम्मान प्राप्त किया। अत्याचारियों का दमन कर प्रजा की रक्षा करने वाले इस संत एंव वीरवर ऋषि की अथर्ववेद काण्ड 19 सूक्त 34-35 के अनेक मन्त्रों मे अधिक प्रशंसा हुई।
देवा यं चकुर्भेषजमग्रे विष्कन्धदषणम॥
अर्थात: जब अंगिरा ने शाक द्वीप कुश द्वीप को विजित कर लिया तो ऋषियों ने अंगिरा को इन्द्र की उपाधि प्रदान कर उन्हे प्रजाहित मे शत्रुनाशक जंगिड कहा, अर्थात दुर्घर्ष सेनानायक का कार्य प्रतिपादित करने के कारण जंगविजयी के पेअतीक के स्वरुप उन्हे जंगिड कह कर सम्मानित किया।
कालान्तर मे अंगिरा ऋषि के साथ जंगिड उपाधि जुड जाने के कारण अंगिरा वंशी जांगिड कहलाने लगे। अंगिरा ब्रह्मा के मानस औत्रो मे से एक हुए ब्रह्मर्षि थे।
ब्रह्मा अर्थात ब्राह्मण होने के कारण अंगिरा वंशी जांगिड, जांगिड ब्राह्मण कहलाये।
अथर्ववेद काण्ड 17 सूक्त 34 मन्त्र 1 अंगिरा ऋषि के जांगिड होने के प्रमाण कहता है।
द्धिपाच्चतुष्पादस्माकं सर्व रक्षतु जंगिड:॥
अंगिरा(जांगिड) की दिग्विजयों का वर्णन यूरोप के विद्वानो ने खुलकर "एनसियन्ट हिस्ट्री आफ परसिया" जैनेसिस तथा मिल्टन का पैराडाइज लास्ट जैसे अनेक ग्रन्थो में किया है।
सायणा भाष्य के अनुसार देवों ने अंगिरा को तीन बार उत्पन्न किया। इस नाम के तीन महर्षि प्रचीन काल मे हो गये है पुरातन काल मे ब्राह्मण ऋषि इस जंगिड ऋषि को अंगिरा नाम से जानते थे।
सायणाचार्य ने अंगिरा ऋषि को ही जंगिड ऋषि माना है। वेद स्वत: यह सिद्ध करते है |
पाश्चात्य विद्वान ग्रीफिथ भी यह स्वीकार करते है कि हे जंगिड तेरा ही नाम जांगिड है तू रक्षा करने वाला जंगिड है।
पब्लिक पुस्तकालय लाहोर मे सुरक्षित अथर्ववेद संहिता मे जंगिड शब्द की व्युत्पति इस प्रकार की गई है-
"जंगिडास्य(विशेषमणि)सक्तमधीते वेति वासौ जंगिड: यद्धा जांगिड्स्यपत्यं जांगिड:।
अर्थात जो जंगिड रक्तक अध्ययन कर्ता है अथवा जो जंगिड ऋषि की संतान है वह जंगिड कहलाने का हकदार है।
ऎतरेय 3.34 मे उक्त कथन की सत्यता को प्रकट करने के लिये इस प्रकार कहा है-
इस तरह सब मिलकर चाहे वेद या ब्राह्मण ग्रन्थ अथवा प्राचीन भाष्यकारों और पाश्चात्य यूरोपियन समीक्षक ही क्यों न हो सभी ने एक मत से यही स्वीकार किया है कि अंगिरा ऋषि का ही दूसरा प्रमाणित नाम जांगिड है।
परशुराम शास्त्री ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ "ब्रह्मणवंशोतिवृतम" मे जंगिड का अर्थ इस प्रकार अभिव्यक्त किया है ।
"जगम्यते शत्रुन वाधिनुम इति जांगिड: जगिरतीति जंगिर:।
अर्थात जो शत्रुओं का चमन करने मे निरन्तर लगा रहता है वही जंगिड(वीरवर) है।
अंगिरा ऋषि ने किसी समय ऎसी जंगल मे अपना आश्रम बनाया होगा जहां जंगिड वृक्षो की अधिकता रही हो, कुल मिला कर महर्षि अंगिरा का एक नाम जंगिड भी प्रसिद्द्ग रहा है।