जांगल देश
यस्यां वेदिं परिगृहणन्ति भूम्यां यज्ञं तन्वन्ते विश्वकर्माण:। यस्यां मोयन्ते स्वरव: पृथ्व्यामूर्व्या: शुक्रा आहुतय: पुरस्तात॥
पाणिनी मे चिगत देश छ: संघ राज्यों का उल्लेख किया है।
महाभारत के अनुसार त्रिगर्त के संसप्रको की सेना दुर्योधन की ओर से लडी थी। पूर्व पंजाब की सबसे बडी भौगोलिक इकाई कुरु जनपद थी, वस्तुत: इसे तीन हिस्से थे। कुरुराष्ट्र कुरुक्षेत्र और कुरुजांगल, ये तीनो एक दूसरे के निकट थे। थानेश्वर के चारो ओर का प्रदेश कुरुक्षेत्र हिसार का कुरुजांगल और हस्तिनापुर का कुरुराष्ट्र था।
बडे पैमाने पर सरस्वती से गंगा तक प्रदेश कुरु जनपद के अन्तर्गत था।
भारतीय इतिहास मे कुरु जनपद का सांस्कृतिक व राजनैतिक प्रभाव की दीर्घाकाल तक सर्वोपरी था। उदीच्य और प्राच्य के बीच की जो विभाषक भूमि है उसे अन्तर्गत होने के कारण कुरुदेश जिसके प्रभाव की किरणे पंजाब उत्तर प्रदेश और राजस्थान पर समान रुप से पड्ती थी। पूर्व पश्चिम,उत्तर और दक्षिण से सब प्रकार के प्रभाव इसी मध्य बिन्दु पर केन्द्रित होते रहते थे गंगा-यमुना के काठों के बीच का यह भाग अन्तर्वेदिक कहलाता था।
शकुन्ताला के पुत्र दौषर्वान्त भरत का जन्म हस्तिनापुर के पास गंगा के उस पार जहाँ मालिन(प्रचीन मालिनी) नदी गंगा मे मिलती थी हुआ था। यही कण्व ऋषि का आश्रम था। इसी भरत राजा के कारण देश भारत हुआ, ऎतरेय ओर शतपथ के प्रमाणों के अनुसार दौष्यन्ति भरत ने अठत्तर यज्ञ यमुना के किनारे और पचपन गंगा के तट पर किए थे। शतपथ ब्राह्मण की अनुश्रुति तो यहां तक है कि शकुन्तला के पुत्र भरत ने समस्त पृथ्वी को अधीन करने के लिए एक सहस्त्र के जतन मे विश्वकर्मा वंशी जांगिड ब्राह्मणों की प्रमुखता रही।
पृथ्वी सूक्त मं.12 के अनुसार-
यस्यां मोयन्ते स्वरव: पृथ्व्यामूर्व्या: शुक्रा आहुतय: पुरस्तात॥
सानो भूमिर्वयद्धर्धमाना।(पृथिवी सूक्त मं.12) अर्थात- विश्वकर्मा वंशीय जिस भूमि पर यज्ञ को नितान फैलाते है, जहां वे वेदी रचते है, जिस पृथ्वी पर यज्ञ के पुण्य स्तम्भ उर्ध्वस्थापित है जो अग्निहोत्र के द्वारा चमकते रहते है।
जांगल देश व उसके आस-पास का ऋषि-ब्रह्मर्षि युक्त पवित्र वातावरण का आदर्श हिमालय अपनी प्रतिष्ठा को महाभारत काल तक यथावत रखने मे सफल रहा। काम्यक व्यतीत किया था वह जांगल देश ही था। सरस्वती नदी के तट पर अवस्थित कुरुक्षेत्र इसका केन्द्र बिन्दु था।कुरु जांगल देश के अधीश्वर धर्मराज युधिष्ठिर से वनवास के समय जो मिख्य ब्राह्मण मिलने आये थे वे जांगल देश के अंगिरस ब्राह्मण ही थे।
महाभारत वन पर्व मे जांगल देश के कई प्रमाण मिलते है। स्वायंभूव मनु की परम्परा मे चक्षुण का हीरणप्रजापत की पुत्री पुष्करणी से विवाह हुआ। अग्निपुराण अ0- 18 तथा विष्णुपुराण तृतीय अंश के अनुसार चाक्षुष मनु मे अंगिरा नडवला को उहे उरु-पुरु- शतधुमन तपस्वी सत्यवाक कवि अग्निष्ट्क सधुमन और अभिमन्यु जैसे पुत्रों की प्राप्ति हुई। चाक्षुष मनु के ज्येष्ठ पुत्र ऊरु को उनकी पत्नी आग्नेयी से अंग सुनमा ख्याति कतु अंगिरा और गय नामक महान तेजस्वी ओर पराक्रमी छ: सन्ताने हुई। भागवत महापुराण स्कन्ध 6 अध्याय 6 इसका साक्षी है।
उन्मुक(ऊरु) के ज्येष्ठ पुत्र अंग अपने समय के ख्याति नाम प्रजापति हुए इनकी दशवी पीढी मे दक्ष प्रजापति का ज्न्म हुआ। उल्मुक के कनिष्ठ भ्राता अभिमन्यु उल्मुक का पुत्र अंगिरा दोनो अपने समय के प्रतापी ने भारत भूमि से दूर समस्त पृथ्वीको दिग्विजय करने की योजना से अभिमन्यु ने ईरान को विजित किया ओर वहां मन्यपुरी बसाई।
मन्यपुरी महाजल प्रलय के कारण नष्ट हो गई । कश्यप ऋषि के ज्येष्ठ पुत्र वरुण देव ने उसके स्थान "नर"शुष" नगरी बसाई। अंगिरा ने शाक द्वीप तथा कुष द्वीप अर्थात युरोप एंव अफ्रीका महाद्वीप पर विजय प्राप्त कर वहाँ अनेक बस्तियों को स्थापित किया। टर्की का अंकारा रुपस का अंगिरा प्रदेश का घाना का अकरा तथा अंगोला प्रान्त आद सभी प्राचीन नाम आज भी अंगिरा की स्मृति को संजोये हुए है |