समाज के प्रमुख महान स्वतंत्रता सेनानी
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समाज के प्रमुख महान स्वतंत्रता सेनानी
- गुरुदेव पं.श्री जयकृष्ण मणिठिया
- श्री मूलचन्द शर्मा, सूरौठ
- श्री पुष्पेन्द्र जी झाला
- श्री पुरूषोत्तम लाल शर्मा
- स्व. श्री शिव शंकर शर्मा
- स्व० वैध कन्हैयालाल शर्मा उज्जैन
- श्री रामसहाय शर्मा
- स्व0 श्री सोहन लाल जी सुथार
महान स्वतंत्रता सेनानी गुरुदेव पं. जयकृष्ण मणिठिया :-
अंगिरा कुल भूषण पं. जयकृष्ण मणीठिया का जन्म नत्थूसिंह मणीठिया के यहाँ माता पार्वती देवी की कोख से ननीहाल बांकनेर दिल्ली मे भाद्रप्रद कृष्ण अष्टमी सन 1877 को हुआ। महान स्वतंत्रता सेनानी 1930-39 मे महात्मा गांधी के नेतृत्व मे संचालित स्वतंत्रता संग्राम मे जांगिड ब्राह्मण ने बढ-चढ कर भाग लिया। 19 जनवरी 1939 को पं. जयकृष्ण जी को प्रान्तीय दिल्ली कांग्रेस का 17वाँ डिक्टेटर बनाया गया और स्वतंत्रता दिवस 26 जनवरी को बडी धूम धाम से मनाया गया। पत्थर वाले कुएं से एक विशाल जुलुस चला जिसके आगे आगे पं. जयकृष्ण शर्मा पुष्पाहारो से सुसज्जित गाडी मे चल रहे थे। शहर मे अनेक मार्गो से होता हुआ यह जुलूस सांय 4 बजे गांधी पार्क मे समाप्त हुआ और वही उनकी अध्यक्षता मे एक विराट सभा हुई। स्वतंत्रता ओर तेज करने का आह्वान किया।
अयोध्या मे मूर्ति स्थापना- अयोध्या निवासी पं. मथुरा प्रसाद के विरोध के बावजूद आपने कठिन परिश्रम करके मंदिर मे भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित कराई व विधिवत प्राण प्रतिष्ठा भी करवायी।
सेना मे भर्ती- केवल सैनिक जाति के व्यक्ति को ही सेना मे भर्ती होने का आदेश था। आपने अनथक परिश्रम करके 10 सितम्बर 1939 को जांगिड ब्राह्मण को भी सेना मे भर्ती होने का अधिकार प्रदान कराया। जिससे सेना मे भर्ती होने का मार्ग खुल गया।
बांकनेर पाठ्शाला- यह पहले बडे सुचारू रूप से चलती रही। 5 कमरे व विधार्थियो के पीने के पानी का कुआं , चार दिवारी कडा अनुशासन तथा संस्कृत भाषा को विशेष दर्जा था। जातीय मानहानि तथा दिवानी दावो तथा अन्य कार्यो मे व्यस्त होने के कारण आप इस और अधिक ध्यान नही दे पाये जिस कारण पाठ्शाला बन्द हो गयी थी। उसे पुन: प्रारम्भ किया गया। भवन की मरम्मत करायी गयी। बसन्तराम जी बनारस संस्कृत की प्रथम परिक्षा मे सफ़ल हुए। हिन्दी के रत्न, भूषण विशारद तथा प्रभाकर और संस्कृत शास्त्री की पढाई की व्यस्था की गयी।
21 फ़रवरी 1947 का दिन महासभा के इतिहास मे सबसे अधिक दुखदायी दिवस है। जांगिड ब्राह्मण समाज के तपोनिष्ठ नेता पूज्य गुरुदेव पं. जयकृष्ण मणिठिया अकस्मात हृदय गति रुक जाने से स्वर्ग सिधार गये। आप सरदार शहर अधिवेशन मे अपनी धर्म पत्नि सहित 20 फ़रवरी 1947 को चुरू पहुंचे। 21 फ़रवरी को रात्रि को दिल का दौरा पडा। वैध डॉक्टरो के आने से पहले ही फ़ाल्गुन की अमावस्या शुक्रवार को उनका देहावसन हो गया। आज समाज मे हम जिस और भी दृष्टि दौडायेंगे उससे आपको गुरुदेव पं. जयकृष्ण मणिठिया की ही सेवा दिखाई देगी। हम सब उनके पथ पर चलकर समाज कल्याण करे। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।
स्वतंत्रता सैनानी श्री मूलचन्द शर्मा, सूरौठ:- श्री मूलचन्द सूरौठ का जन्म १९०३ मे एक गरीब जांगिड परिवार मे ग्राम सूरौठ तहसील हिण्डौन जिला करौली राजस्थान मे हुआ था। श्रीमूलचन्द शर्माजयपुर राज्य प्रजामण्ड्ल के एक कर्मठ कार्यकर्ता थे। श्री मूलचन्द का सूरौठ के जागीरदारो से जीवन भर संघर्ष रहा। जागीरदारो ने इन पर कई झूठे मुकदमे लगाकर इन्हे तरह तरह से परेशान करने की कोशिशे की।
भारत छोडो आन्दोलन के समय इन पर सैनिक भर्ती रोकने तथा युद्ध का चन्दा न देने के प्रचार पर भारत रक्षा कानून के अन्तर्गत गिरफ़्तार करके 2 वर्ष की सजा दी गयी। जो इन्होने जयपुर की सेन्ट्रल जेल मे सजा काटी। देश की स्वाधीनता के बाद श्री मूलचन्द सूरौठ निरन्तर राजनैतिक सेवा मे लगे रहे। निस्वार्थ: जन सेवा ही उनके जीवन का उद्देश्य था। इन्होने सदा जागीरदारो के शोषण और अत्याचारो का डटकर विरोध किया है। साथ साथ गांधी विचार धारा से परिपूर्ण होकर इन्होने खादी ग्रामोधोग को अपनाया तथा जीवन पर्यन्त अपने हाथो से गांधी चरखे से स्व्यं सूत कातकर अपने पहनने के लिये वस्त्र स्व्यं तैयार करके पहनते थे।
खादी इनके जीवन का स्वावलम्बन का साधन बन गया है। और इसके प्रचार प्रसार के लिए हिण्डौन क्षेत्रीय उत्पादक सहकारी समिती बनाई गयी तथा आजीवन उसके विकास के किये कार्य किया गया। श्री मूलचन्द शर्मा को सन 1972 मे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा स्वतंत्रता सेनानी सम्मान स्वरूप ताम्रपत्र प्रदान किया गया। तथा इनका परिचय विवरण स्वतंत्रता संग्राम सेनानी निर्देशिका मे 1933 मे प्रकाशित किया गया है।
हिण्डौन क्षेत्र के टोडाभीम महुवा खेड्ला सुरौठ श्री महावीर जी बयाना कटकड मैडी लावडा आदि स्थानो पर खादी उत्पादक केन्द्र खोलकर हजारो बुनकरो तथा कतिनो को खादी से श्रम कर देश सेवा से जोडा और उन्हे कुटिर व गृह उधोग के लिये प्रेरित किया। जिससे बुनकर व महिला कार्यकर्ताओ को जीविकापार्जन का साधन सम्पन्न बनाया जो आज भी कार्यरत है।
-श्री ओम प्रक्काश मोरीवाल महामंत्री श्री विश्वकर्मा जांगिड कर्मचारी समिती जयपुर
स्व० वैध कन्हैयालाल शर्मा उज्जैन :- प्रथम लोकसभा निर्वाचान सन 1952 दे चुनाव मे उज्जैन से भारी मतों से विजयी हुए क्रान्तीकारी स्वतंत्रता सेनानी वैध कन्हैयालाल शर्मा को लोग आज भी नही भूले है । महात्मा गांधी और पं० जवाहर लाल नेहरु के अति निकट रहे ये अपने स्वतंत्र और कामरेड व्यक्ती के लिये सदा याद किये जायेंगे । इनका त्याग बलिदान, देश तथा समाज के लिये अतुलनीय है । जांगिड समाज मे यही एक ऐसे व्यक्ती है, जो सीधे निर्वाचन मे भारी बहुमत से जीतकर लोकसभा पहुंचे । इनका गौरवमय व्यक्तित्व सदैव इतिहास मे जीवित रहेगा । स्वतन्त्रता सेनानी श्री पुष्पेन्द्र झाला राजस्थान मे झाला साहब के नाम से विख्यात श्री पुखराज जी झाला ख्याति प्राप्त स्वतन्त्रता सेनानी का स्वर्गवास 5 फ़रवरी 2000 को बिलाडा जिला जोधपुर मे हो गया। ये 83 वर्ष के थे। उनका अन्तिम संस्कार पूरे सम्मान के साथ किया गया था।
श्री पुष्पेन्द्र जी झाला :- आपका जन्म एक साधारण जांगिड परिवार मे गांव देवली कलां जिला पाली राजस्थान मे दिनांक 13-11-1919 को हुआ। अल्प आयु मे आपने राष्ट्रियता की भावना से जुडकर राष्ट्रीय आंदोलन एंव सामन्त शाही के विरुद्ध आंदोलनो मे भाग लेना शुरू कर दिया। आप पश्चिमी राजस्थान के अनेक गणमान्य नेताओं सर्व श्री जयनारायण व्यास मथुरादास माथुर हरिभाई किकंर एंव सर्वोदयी नेता श्री गोकुल भाई भट्ट संत विनोभा भावे जैसे महान लोगो के संपर्क मे आये।
इस दौरान अनेको बार जेल की यातनायें भोगी। 1948 मे जयपुर मे कांग्रेस अधिवेशन मे जाते हुए उनकी बस उलट जाने के कारण कै जाने माने नेताओ के साथ श्री झाला भी गंभीर रूप से घायल हो गये थे। काफ़ी दिन अस्पताल रहे, लेकिन अपनी लेखनी के द्वारा वे जन जागृति करते रहे। इस प्रकार श्री झाला ने अपना पुरा यौवन स्वतंत्रता आंदोलन मे झोक दिया। स्वतंत्रता के बाद केन्द्रिय एंव राज्य प्रशासन ने उन्हे कई अवसरो पर सम्मानित किया। उन्हे स्वतंत्रता सेनानी की पेशं न से नवाजा गया।
1987 मे तत्कालीन राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा ने इन्हे ताम्र पत्र से विभूषित किया। । हर वर्ष बिलाडा मे 15 अगस्त एंव 26 जनवरी के समारोहो मे ध्वजारोहण इन्ही के हाथो से होता था। श्री झाला एक साहित्यकार ओर एक निर्भिक पत्रकार भी थे। कई स्थानीय दैनिक पत्रो के सम्पादक तथा पत्रकार के रूप मे सामन्त शाही जागीरदारी तथा अन्य जुल्मो व उत्पीडनो के विरूद्ध कलम द्वारा अपनी आवाज उठाते रहे। जांगिड ब्राह्मण पत्र मे भी वे कई वर्ष तक सामाजिक लेख कविताऎ आदि लिखते रहे। पत्र के एक अंक मे तो उनका छाया चित्र मुखपृष्ठ पर भी छ्प चुका था।
स्वतंत्रता सेनानी पुरोषोत्तम लाल शर्मा :- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मे 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व मे अंग्रेजो से भारत मुक्त कराने के ध्येय से अनेक तत्कालीन युवाऒं ने शपथ पूर्वक उदघोष किया व अंग्रेजो भारत छोडो के नारे की गुंज से महात्मा गांधी के स्वतंत्र भारत के सपने साकार करने की कसम खाई। उनमे क्षेत्रिय विश्वकर्मा समाज के जांगिड युवा पुरुषोत्तम लाल शर्मा ने करो या मरो आजादी के आंदोलन मे संघर्ष कर तत्कालीन मेवाड रियासत की राजधानी उदयपुर मे अंग्रेज शासको से सामना किया तथा अनेक यातनाऎ सहन करते हुए आजादी के आंदोलन मे 24 अगस्त 1942 मे गिरफ़्तार कर जेल भेज दिये गये। 1952 मे शिक्षा विभाग मे नियुक्ति पाकर प्रशिक्षक की भूमिका निभाते हुए 28 वर्ष की राजकीय सेवा के पश्चात 1980 मे 55 वर्ष की सेवा निवृत हो गये। जीवन के अवसान काल मे जो समय शेष रहा उसमे जब उन्हे जुलाई 2000 मे स्वतंत्रता सेनानी का पेशंन एंव ताम्र पत्र राजस्थान सरकार द्वारा दिया गया।
वर्तमान मे आप नगर व प्रदेश के जनहित के कार्यो के साथ ही विश्वकर्मा जांगिड विकास संस्था उदयपुर के कार्यकारिणी मे सक्रिय सदस्य की भूमिका निभा रहे थे। फ़लत: 77 वर्ष की आयु मे भी सर्वत्र संपर्क सूत्र का विस्तार कर आज युवाओं को उज्जवल भारतीय समाज के भविष्य की आस्था के प्रेरक बनकर मानव जीवन को गौरवान्वित कर रहे है। उदयपुर जांगिड समाज के इस एक मात्र आदर्श स्वतंत्रता सेनानी को प्रदेश एंव महासभा स्तर पर अनेक अनेक अभिवादन के साथ शुभकामनाए अर्पित करते है।
स्व. शिव शंकर जी शर्मा :- 27-28 मई 1939 का दिन मन्द्सौर के इतिहास मे बडे गौरव का दिन माना जाता है। देश को अंग्रेजो की गुलामी से आजाद कराने के लिये स्वतंत्रता सेनानियो कई क्रांतिकारियो का योगदान रहा है। इसी श्रृंखला मे स्व. श्री शिवशंकर जी शर्मा स्व. सेनानी नयापुरा मंद्सौर का नाम भी बडे गर्व के साथ लिया जाता है। शर्मा जी बचपन से ही क्रांतिकारी विचारोके थे। आप पूज्यनीय महात्मा गांधी के निर्देशन मे सन १९३२ से १९४२ तक सक्रिय राजानीती मे रहे।
आपने मंदसौर व नीमच मे अथक परिश्रम से राजनैतिक सम्मेलन किया। जनकुपुरा मंद्सौर मे पहला जिला राजनैतिक सम्मेलन शुरू करने के लिये श्री शर्मा ने दिनांक 17 मई 1939 की शाम को 5 बजे खादी भंडार से विशाल फ़ेरी निकाली। जो शहर के मुख्य बाजारो से जाती हई जनकूपुरा बडाचौक मन्द्सौर मे की गयी। रात 8.30 बजे सभा शुरू हुई। सभा मे ग्वालियर राज्य सार्वजनिक सभा के प्रधानमंत्री श्री गोखले गुना जिले सुप्रसिद्ध कार्यकर्ता श्री गिरधर लाल ठाकुर व शिवशंकर शर्मा आदि सज्जनो के भाषण हुए। सभा मे देश की बिगडी हुई हालत को सुधारने के उपाय व राजनैतिक सम्मेलन की आवश्यक्ता के बारे मे समझाया। जिसमे कई प्रमुखो के भाषणो के बाद कई राजनैतिक प्रस्ताव पास किये। विराट सभा मे श्री हरिभाउ उपाध्याय दा साहब भी त्रिम्बकराव पुस्तके वकील श्री गोविन्द राम हिरवे वकील श्री रामदेव जी अग्रवाल श्रीगोपीकृष्ण विजयवर्गीय श्री गोखले मुल्ला फ़जल भाई श्री अम्बा प्रसाद श्री सिद्धनाथ आगरकर सम्पादक स्वराज मुल्ला तैयब अली श्री तख्तमल जैन मुंशी मंजूर अली मुंशी हफ़िजुद्दीन कुरैशी पं. आनन्द बिहारी मिश्र पं. आयचित जी पं. सूर्यनारायण के साथ मे शिवशंकर शर्मा के ओजस्वी भाषण हुए।
शिवशंकर शर्मा ने मन्द्सौर जिले का प्रथम राजनैतिक सम्मेलन 27,28 मई 1939 को पूर्ण करके इस रिपोर्ट को स्वराज्य समाचार पत्र मे प्रकाशित करवाया। इस प्रकार स्व. शिवशंकर शर्मा के जीवन की यह महत्वपूर्ण घटना है।अंग्रेजो की हुकुमत मे स्वराज्य की बात करना तलवार की धार पर चलना था। अंग्रेजो की हुकुमत से निडर श्री शर्मा ने अपनी जान की परवाह नही करते हुए इतना विशाल प्रथम राजनैतिक सम्मेलन जनकपुरा मंदसौर मे आयोजित किया।
इससे भी विशाल सम्मेलन बघाना नीमच मे दिनांक 1 व 2 जून को आयोजित किया। इस प्रकार स्व. शिवशंकर शर्मा ने पूज्य महात्मा गांधी के सानिध्य मे रहते हुए तथा विश्व की महान विभूतियां जैसे श्री खान अब्दुल गफ़्फ़र खां सीमांत गांधी तथा भारत कोकिला श्री सरोजनी नायडू आदि को साथरहकर देश की गुलामी की जंजीरो से आजाद कराने के लिए अपना तन मन धन न्यौछावर कर दिया। एसे स्व. श्री शर्मा को म.प्र. शासन ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित किया तथा इनकी पत्नी सरस्वती शर्मा को म.प्र शासन के राष्ट्रीय कार्यक्रमो मे कलेक्ट्र द्वारा सम्मान आदर दिया जाता है।
श्री रामसहाय शर्मा :- आपका जन्म सन 1916 मे श्री महादेव जी मिस्त्री के यहाँ दौलतपुरा( बैनाड) तह.आमेर जयपुर मे हुआ। बचपन मे ही अहमदाबाद चले गये तथा 1936 से 1939 के के मध्य महात्मा गांधी के संपर्क मे आये और उनके प्रतिदिन प्रवचन सुनने से प्रभावित हुए। 1942 के भारत छोडो आन्दोलन और गांधी जी के असहयोग आंदोलन मे विदेशी मीलो के कपडे की खोराबीसल मे खोरा जी के साथ होली जलाकर खादी पहनना शुरू कर दिया। 1939 मे जयपुर आकर रेलवे के ठेके मे लकडी के स्लीपर खीचंने का कार्य किया। इस काम को पूरा होने के बाद बम्बई मे साझे मे व्यय्साय शुरू किया जो 6-7 वर्ष चला वहां सर्वप्रथम सहकारी समिति संस्था 1952 मे बनाकर चरखा , पेटी चर्खा, अम्बर चर्खा, तेल घाणी आदि गांव मे ही उधोग लगाकर बनाने लगे।
इसके बाद डीजल इंजनो से चक्की और कुतर मशिने 1955 मे चालू की तथा टेक्टरो पर मशीन लगाकर गांव गांव कुतर का कार्यकिया। लडको को सबको शिक्षा पाने के लिये प्रेरित किया उन्हे पढाया और गांव वालो को शिक्षा का प्रचार प्रसार के लिये गांव मे शाला खुलवाकर भवन बनवाया। इस समय क्षेत्र मे प्रजामंड्ल की स्थापना हई। गांव मे सभाएं की तथा जागीरदारो के खिलाफ़ वातावरण तैयार किया। गांव के तत्कालीन जागीर से बैठ बेगार के लिये मुआफ़ि करवायी ओर लगान कम करने के लिये मुकदमा लडा और जीत के जनता को राहत दिलाई यह वाकया दरबार मानसिंह के राज मे रावल संग्राम सिंह जी के कोर्ट मे जीता गया।
बाद मे दूसरा आम जनता को छान छप्पर वास्त पूला पानि फ़्री पाने के लिये मुकदमा जीता। इस तरह आम जनता के लिये अनेक बार जागीर दारो से लडाई लडी। सार्वजनिक संपर्क मे रहते हुए आजादी के बाद जब कांग्रेस की स्थापना हुई तो आमेर मण्ड्ल मे सक्रियता से कार्य किया। पंचायतीराज की स्थापना से पहले हे पंच फ़िर उपसरपंच निर्विरोध और 1965 से सरपंच पद पर लगातार 13 वर्ष रहे और जनता की निस्वार्थ सेवा की। पंचायत समिती से कभी यात्रा भत्ता या स्वतंत्रता सेनानी पेशंन नही ली है।
स्व0 श्री सोहन लाल जी सुथार :-
आपका जन्म सन् 1914 में गांव सदलपुर जिला हिसार हरियाणा के एक साधारण परिवार में श्री शंकर लाल जी सुथार के घर महान माता श्रीमति कृष्णा देवी के कोख से हुआ। आप साधारण हिन्दी की शिक्षा प्राप्त करके अपना पैतृक कार्य करने लगे। आपका विवाह सन् 1930 में साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाली श्रीमति हरदेई देवी के साथ हुआ।
जिससे आपको एक पुत्र हनुमान दास और तीन पुत्रीयां हुई। आप सन् 1936 में प्रसिद( देशभक्त सन्यासी भुतपुर्व संसद सदस्य तथा स्व0 परम गौ सेवक लाला हरदेव सहाय जी की प्ररेणा से कांग्रेस में सम्मिलित होकर स्वाधीनता संग्राम में कूद पडे। आपको सन् 1940-41 के व्यक्तिगत संग्रह में सक्रिय भाग लेने के कारण आपको 6 माह कठोर केद की सजा दी गई। जो आपने हिसार और फ़िरोजपुर जेल में बिताई। आपने इस दौरान हथियार बनाने में महारत हासिल की और बाद में आपने सत्यग्रहियों के लिए पिस्तौल, बन्दुक, राईफल बनाई। इस कारण आपको अंग्रेजो ने दस नम्बरी अपराधी घोषित कर दिया। जो देश आजाद होने के बाद में हटी। देश आजाद होने के बाद आपने आटा चक्की का व्यवसाय शुरु किया।
आपको सन् 1971 में भारत सरकार की तरपफ से ताम्ब्र पत्रा देकर सम्मानित किया गया। और आपको देश सेवा के कारण भारत सरकार ने आपका नाम स्तंभ लेख पर लिखवाकर गांव के राजकीय उच्च विद्यालय में लगवाया गया। और आप गांव में रहकर शान्ति पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे। और गांव में कई सामाजिक कार्य किये। और 7 अगस्त 1992 को छाती में संक्रमण की वजह से उनका देहांत हो गया। और उनका अतिंम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया गया। और उनके पीछे एक पुत्र और दो पौत्र मागेंराम नम्बरदार और धनपत को छोड़ गए। उनको सन् 1997 में हरियाणा सरकार द्वारा मरणोंप्रांत ताम्ब्र पत्र देकर सम्मानित किया गया।