सन्त महात्मा
जाँगिड समाज के उल्लेखनीय सन्त महात्मा

1. 1008 श्री स्वामी गोविन्दराम जी
श्री सालिगराम जी महाराज बगेची समदडी राजस्थान के वैष्णव शिरोमणि संत श्री श्री १००८ श्री गोविन्दरामजी महाराज का शुक्रवार 16 मार्च 07 को साकेतवास हो जाने पर 1/4/2007 को विशाल भण्डारा समदडी मे सम्पन्न हुआ। इस भण्डारे मे गृह राज्य मंत्री अमराराम चौधरी सहित वैष्णव समाज के सैकडो साधु संतो सहित देश के कोने कोने से आये असंख्य भक्तजनो ने भाग लिया।
परमपूज्य वैष्णव शिरोमणि वैरागी सन्त श्री श्री १००८ श्री गोविन्दरामजी महाराज इस युग के महान सन्त थे। आप सदैव वैष्णव समाज को धर्म परायण बनाते हुए समृद्ध सामाजिक व्यस्था के लिये कर्मयोगी की तरह अनवरत सलंग्न रहे। जिनसे समस्त वैष्णव समाज के जीवन मे एक उर्जा का संचार हुआ। इसी कारण 7 फ़रवरी 2007 को श्री वैष्णव सम्प्रदाय जगदगुरु रामानन्द जी महाराज द्वारा आपको वैष्णवशिरोमणि की पदवी से विभूषित किया।
आप द्वारा जहां भी मन्दिरो की प्राण प्रतिष्ठाओ सम्पन्न करवायी। वहां विश्वकर्मा जी की मूर्ति की प्रतिष्ठा अवश्य करवायी। आपके सानिध्य मे ही पाली सहर में वर्ष 1997 श्री विश्वकर्मा मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा धूमधाम व उल्लास के साथ सम्पन्न हुई।
जीवन परिचय: आपका जन्म 12/4/1930 शनिवार हनुमान जयन्ती के दिन बाडमेर जिले की सिवाणा तहसील के ग्राम गुडानाल के निवासी श्री पूनाराम जी सुथार के घर गंवरी बाई की कोख से चवलेरा परिवार मे हुआ। आपका नाम माधवाराम था।
धार्मिक आन्दोलन मे भागीदारी: आपने विश्व हिन्दू परिषद के बालोतरा प्रखण्ड के संरक्षक के रूप मे रहकर गंगाजल रथ यात्रा मे अग्रणी भूमिका निभाई। रामजन्म भूमि जन्म आंदोलन मे नेतृत्व प्रदान करते हुए इस क्षेत्र के धर्मपरायण जनता कि सक्रिय रूप से आंदोलन मे सहभागी बनाया।
समदडी बगेची का विस्तार: श्री शालिगराम जी महाराज ने वि.सं.१९६१ मे समदडी मे नदी किनारे बगेची व शिव मन्दिर बनाकर शिवलिंग की स्थापना की |
2. संत श्री जगाराम जी
संत श्री जगाराम जी: आप परमहंस महात्मा श्री शोभाराम जी के शिष्य थे और बहुत पहुँचे हुए संत थे। आपका जन्म श्री लक्ष्मणराम बरडवा एंव माता सिंगारी देवा जायसवाल के यहाँ रघुनाथपुरा ग्राम मे हुआ। आपने योगबल से शरीर त्याग दिया।
3. संत श्री गमडीराम जी
संत श्री गमडीराम जी: टाप बाल ब्रह्मचारी कबीर पंथी संत हुए है। आपका जन्म मारवाड रियासत के खाडवाली वासणी ग्राम मे श्री शिवराम जी कडवणिया व माता श्रीमति धनीबाई के यहाँ सन 1910 मे हुआ। आपकी समाधी ग्राम रातकुंडिया भाखर तीखी डूंगरी भूरिया बाबा की धूणी के पास स्थित देवरी पर है। जहाँ प्रत्येक पूर्णमासी को मेला लगता है।
4. श्री 1008 परमहंस रामबख्श जी महाराज
आप तपस्वी सन्त थे। जोधपुर मे पहाड के तलहटी मे एक अत्यन्त शान्त व रमणीक स्थान पर आपने घोर तपस्या की। यह स्थान आज भी कांगडी बगीची के नाम से प्रसिद्ध है।
5. वेदपाठी सदाचारणी विद्वान श्री गोपाल जी दीक्षित
वेदपाठी सदाचारणी विद्वान श्री गोपाल जी दीक्षित: ब्रज भूमि मे गिर्राज गोवर्धन के निकट अहमद पुर ग्राम मे जांगिड ब्राह्मण कुलभूषण श्री चूडामणी दीक्षित के घर आपका जन्म हुआ। आप वेद शास्त्र वेद पुराणादि के पांरगत विद्वान थे। श्रीमद भागवत पर नियमित प्रवचन करना आपका नियम था। बरार क्षेत्र मे आपने अनेक शिष्यो को सदाचारणा की दीक्षा दी।
6. स्वामी श्री 108 गोकुलानन्द जी
7. भक्त श्री बुल्लाराम जी
भक्त श्री बुल्लाराम जी : मुजफ़र नगर के बुढाना नगर मे विख्यात जांगिड परिवार मे आपका जन्म हुआ। आपने स्वामी रामदत्त शर्मा वैरागी से दीक्षा लेकर घोर तपस्या की जिससे इन्हे अनेक योग सिद्धिया प्राप्त हुई। आपने सन 1913 मे मुडभर ग्राम मे श्री कालाराम जांगिड को दीक्षा देकर स्वामी कल्याण देव बनाया । स्वामी कल्याण देव पूजनीय महात्मा है।
8. स्वामी सददराम जी
आपका जन्म नगौर जिले के करणू ग्राम मे ऊमा शासन के जांगिड परिवार मे हुआ। आपने रामस्नेही सम्प्रदाय के प्रसिद्ध साधु श्री जियाराम से दीक्षा ली। सुप्रसिद्ध संत स्वामी रामसुख दास जी महाराज की माता कुन्नीबाई के सहोदर थे।
9. महात्मा कन्हीराम जी
आपका जन्म चंडीग्राम मे मांढण शासन के जांगिड परिवार मे हुआ था। आपने श्री दाखाराम जी से दीक्षा ली। सुप्रसिद्ध सन्त स्वामी रामसुखदास जी महाराज जब सात वर्ष की आयु के थे। तब श्री कान्हाराम जी ने अपना शिष्य बनाया था।
10. योगीराज स्वामी मुकुन्ददास जी
नागौर जिला के भदाणा ग्राम के जांगिड कुलभूषण श्री मेघराज बरडवा के यहाँ आपका जन्म सन 1910 मे हुआ। आपने महामुद्रायोग का अभ्यास किया तथा जोधपुर के निकट चैनपुरा गावँ मे शम्शान मे दो वर्ष तक योगाभ्यास किया। समाधि सिद्ध होकर कुण्डीलिनी साधना योग दीपिका नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की। आपने श्री विश्वकर्मा मन्दिर का जिर्णोद्धार भी कराया।
11. स्वामी मोतीरामजी
आप श्री लक्ष्मीनारायण गुलाबचन्द जांगिड नवलगढ के छोटे भ्राता थे। आप अच्छे भजनोपदेशक हुए तथा समाज सुधार के आपने अनेक कार्य किये।
12. स्वामी भवानन्द जी महाराज
हरियाणा प्रदेश के रोहतक जिले के महम कस्बे मे गंगादत्त के सुपुत्र श्री जसराम शासन काले गोत्र वास्य के यहाँ आपका जन्म हुआ। श्री 108 स्वामी परमानन्द जी से समागम व सत्संग से आपको उपरामता प्राप्त हुई। 14 वर्षो तक स्वाध्याय व योगाभ्यास किया। 1934 मे आपने सतय सिद्धान्त नाम श्रेष्ठ वेदानुकूल ग्रन्थ की रचना की। आपने ईगरा बीबीपुर जीन्द के बीड मे बहबलपुर तथा दुर्जनपुर मे पाँच आश्रम बनाये। ब्रह्मेषि गीतानन्द सरस्वती आपके शिष्य थे।
13. ब्रह्मर्षि योगेश्वर गीतानन्द जी सरस्वती
आपका जन्म पाटौदी जिला महेन्द्रगढ के निकट बिरहेडा गांव मे चैत्र सुदी नवमी को सन 1882 मे श्री तोताराम जांगिड व माता जीवनी बाई के यहाँ हुआ था। आपने गुरु भवानन्द जी महाराज से दीक्षा लेकर घोर तपस्या और योगाभ्यास किया। 1930 मे नौरंगपुर मे आपने प्रथम आश्रम बनाया और शनै शनै 18 स्थानो पर आश्रम स्थापित कर बाघौल मे अपना मुख्य आश्रम बनाया। बाघौल गुडगाँव से सोहना जाने वाले मार्ग पर स्थित आलीपुर प्याउ से तीन मील अन्दर पहाडो मे स्थित है। ब्रह्मार्षि गीतानन्द जी का प्रभाव क्षेत्र बहुत व्यापक था । आप निस्पृयोगी थे। आपने वेदप्रकाश मुक्तिप्रकाश हितोपदेश आदि 21 ग्रंथो की रचना 1979 की बसन्त पंचमी के दो दिन पूर्व आप ब्रह्मलीन हुए।
14. स्वामी खुशिया नन्द्जी महाराज
आप ब्रह्म्र्षि गीतानन्द जी सरस्वती के ब्रह्मकालीन हो जाने पर बाघौल आश्रम पीठाधीश्वर हुए। आपने घोर तपस्या की और वचन सिद्धता प्राप्त की। 1973 की शरद पूर्णिमा को आप ब्रह्मलीन हुए । 1973 की गुरु पूर्णीमा महोत्सव पर आपने अपना उतराधिकारी पीठाधीश्वर स्वामी चेतानन्द जी सरस्वती को नियुक्त किया।
15. स्वामी निष्कुलानन्द जी
हालार प्रान्तार्गत शेषपाठ ग्राम मे सन 1865 मे श्री राम भाई तथा श्रीमती अमृता के यहाँ आपका जन्म हुआ। भगवान श्री स्वामी नारायण जी से दीक्षा लेकर आप निष्कुलानन्द बन गये । आप उच्च कोटि के सन्त प्रकाण्ड पण्डीत हुए। आपने 13 ग्रन्थो की रचना की। 22 प्रकरण ग्रंथ लिखे जिनमे चिन्तामणि मे 194 प्रकरणो का वर्णन 7 हजार दोहे चौपाईयो मे छन्दोबद्ध है। 12 वर्ष की आयु मे सन 1957 मे ब्रह्मालीन हो गये।
16. स्वामी गौतमानन्द जी
महेन्द्रगढ जिला हरियाणा के श्री त्रिलोकिनाथ जांगिड के यहाँ आपका जन्म हुआ। आप उच्च कोटि के महात्मा बने सन्यास धारण किया और समाज सुधार के अनेक कार्य किये।
17. स्वामी अगलूराम जी महाराज
पंजाब मे चानिका नामक स्थान पर आप प्रसिद्ध महात्मा हुए वही पर आपने विश्वकर्मा मंदिर का निर्माण कराया।
18. भाई अर्जुनसिंह जी बागडिया
पंजाब मे भाई अर्जुन सिंह जी उच्च कोटि के प्रभाव शाली संत हुए है। आप पटियाला नाभा तथा जीन्द तीनो फ़ुलकियाँ रियासतो के राजगुरू थे। आप हिज हौलीनेस की सर्वोत्तम सम्मानपूर्ण उपाधि से विभुषित थे।
19. बाबा नन्दसिंह जी कलेरा
आपका जन्म शेरपुर कलां तहसील जगरांवा जिला लुधियाना मे बाबा जय सिंह सोई के यहाँ १८७० मे हुआ। आप उच्च कोटि के सन्यासी हुए। आपने लुधियाना से २८ मील दूर रेलमार्ग पर गुरूद्वारा बनाया। सतलज नदी मे जीवन समाधी ली। आपकी गद्दी पर संत ईश्वर सिंह जी बिराजे।
20. स्वामी कल्याण देव जी महाराज
आप भारत विख्यात अति उच्च कोटि के प्रभाव शाली महात्मा है। सनातन धर्म जगत मे बडी सम्मानित दृष्टि से पूज्य है। आपका जन्म उत्तर प्रदेश के मुडंभर ग्राम तहसील बुढाणा जिला मुजफ़्फ़र नगर मे श्री फ़ेरूराम जांगिड के घर कार्तिक पूर्णिमा सन 1880 मे हुआ। इनका नाम कालाराम था। ये ग्यारह वर्ष की आयु मे सन्यासी बन गये तथा 17 वर्ष की आयु मे महात्मा बुल्लाराम भक्त से दीक्षा ले स्वामी कल्याण देव हुए। गंगा के किनारे शुक्रताल मे आपने श्री शुक्रदेव का अति भव्य सुविशाल एंव मंदिर निर्माण कराया।
वही एक विश्वकर्मा मंदिर व धर्मशाला भी बनवाई जिसका उदघाटन सन 1958 मे तत्कालीन प्रधान मंत्री स्व. पंडित जवाहर लाल नेहरु ने किया था आपने आर्य समाज के माध्यम से जन जागरण एंव अछूतोद्धार का कार्य किया । जे.टी.सी. टेक्नीकल कॉलेज, पोलिटेक्नीकल कॉलेज , कृषि कॉलेज, आयुर्वेदिक अनुसंधान संस्थान, आयुर्वेद कॉलेज आदि अनेको शिक्षण संस्थानो की स्थापना एंव संचालन किया ।
26 जून 1982 को मुजफ़्फ़र नगर मे स्वामी जी का भारत सरकार की ओर से पदम श्री से अलंकृत करने पर तथा 102 वर्ष की आयु प्राप्ति पर नगर वासियो की ओर से सार्वजनिक अभिनन्दन किया गया। इस भव्य समारोह मे देश की अनेक गणमान्य राजनेता , सामाजिक कार्यकर्ता एंव सन्त महात्माओ के अतिरिक्त प्रशासनिक व शिक्षा जगत के अनेक अधिकारी भी जनमानस के साथ उपस्थित हुए। आपने 124 वर्ष की आयु पाकर शुक्रताल मे मंगलवार को एकादशी के दिन रात्रि 12 बजकर 20 मिनट पर अन्तिम सांस ली ओर ब्रह्मालीन हो गये ।
21. स्वामी राम सुखदास जी महाराज
आप भारतवर्ष के अत्यन्त उच्च कोटि के वितरागी सन्यासी है। आपका जन्म श्री रूघाराम जी पिडवा ग्राम माडपुरा जिला नागौर के यहाँ माघ शुक्ला त्रियोदशी सन 1904 मे हुआ। आपकी माता कुन्नीबाई के सहोदर भ्राता श्री सद्दाराम जी रामस्नेही सम्प्रदाय के साधु थे।
सात वर्ष की आयु मे ही माताजी ने आपको इनके चरणो मे भेट कर दिया। उसी समय स्वामी कान्हीराम जी गांव चाडी ने आजीवन शिष्य बनाने के लिए आपको मांग लिया। शिक्षा दीक्षा के पश्चात आप सम्प्रदाय का मोह छोडकर सन्यासी हो गये और स्वामी रामसुखदास जी ने अपने प्रवचनो से निरन्तर अमृत वर्षा की। गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा संचालित समस्त साहित्य का आप वर्षो तक संचालन करते रहे।
वस्तुत: गीताप्रेस के तीन कर्णाधार श्री जयदयाल गोयन्दका, हनुमान प्रसाद पोद्दार तथा स्वामी रामसुखदास जी महाराज है। प्राचीन ऋषि परम्परा को पुनर्जीवित करने वाले त्यागी, तपस्वी, निस्पृही सन्यासी है। स्वामी रामसुख दासजी महाराज मिति आषाढ कॄष्ण 11 को रात्रि बिताकर 2/7/2005 को प्रात: लगभग 3 बजकर 40 मिनिट पर स्वर्ग सिधार गये।
22. सन्त श्री धीरजराम जी रामस्नेही
आप बहुत पहुंचे हुए परमार्थी सन्त है। तथा रामद्वारा साहपुरा के अधिष्ठाता है। आपका जन्म भादवा सुदी 13 सन 1907 मे नागौर जिलान्तर्गत गगराणा नामक ग्राम मे श्री लाडूराम बरडवा के यहां हुआ। आपकी माता सुगनी बाई धार्मिक प्रवृति की थी। 11 वर्ष की आयु मे आप रामद्वारा शाहपुरा के पीठाधीश श्री हरीरामसुख जी से दीक्षा लेकर परमार्थ कार्य मे लग गये।
आपने जांगिड जाति के भक्तो के चरित्र एंव वाणियो का संग्रहण किया तथा श्री जांगिड ब्राह्मान भक्तमाल नामक पुस्तक प्रकाशित की। सन्त परसराम जी व धेनुदास जी की मूर्तिया बनवाकर स्थापित किया। आप परोपकार की साक्षात मूर्ति थे, और साहित्य साधना तथा परमार्थ कार्यो मे लीन रहते |
23. सन्त मुमुक्षुराम जी
आप सन्त धीरजराम जी के शिष्य है और स्वामी जी के कार्यो मे सक्रीय सहयोगी है।
24. महन्त श्री बस्ती राज जी
आपका जन्म ग्राम हरसोलाव मे श्री हुकमाराम जी के यहां माता धनी देवी की कोख से सन 1905 मे हुआ । आप सन्त गमडीराम जी के शिष्य है तथा देवरी तहसील भोपाल जिला नागौर नामक स्थान पर सन्त श्री भोलाराम की गद्दी पर विराज रहे है। आप सरल चित धनवान तथा वैराग्यवान सन्त है।
25. सन्त श्री काशीपुरी जी महाराज
आपका जन्म नाम चन्द्रराम है। आपका जन्म सन १८९४ मे ठीकसरी ग्राम मे श्री पीनाराम जाइवाल के यहाँ हुआ। हस्सी के महात्मा शिवराजपुरी से प्रेरणा पाकर आप १९२८ मे दीक्षा लेकर काशीपुरी चले गये। आपका आश्रम गूलर नाडी दुगाली ग्राम है। आप दयालु इन्द्रीयजीत योगी महात्मा है। आपके शिष्य जांगिड वंश के श्री रामपुरी जी है
26. वैध स्वामी लाल बाबा शास्त्री
आपका जन्म बडौदा जिला कोटा मे श्री वैधनाथ शर्मा जांगिड तथा माता धूली देवी के यहाँ हुआ । आपने महात्मा गाँधी की प्रेरणा से हरिजनोद्धार का कार्य किया तथा कई बार जेल यात्रा की। आपने अनेक विश्वकर्मा मन्दिरो की स्थापना की। आप अनुभवी वैध है। आप बालक नाथ जी के शिष्य बने और वृन्दावन पंच मालाधारी आश्रम मे परोपकारी सेवा कर रहे है।
27. स्वामी चेतनानद जी महाराज
आप ब्रह्मार्षि स्वामी गीतानन्द सरस्वती पीठ बाघौल के पीठाधीश्वर है। आप बाघौल पीठान्तर्गत सभी आश्रमो का 1973 से सफ़ल संचालन कर रहे है। आप उच्च कोटि के विद्वान तथा व्याकरणाचार्य एंव वेदान्ताचार्य है।
28. स्वामी रामानन्द जी
आप संतगुरु हंस जी के शिष्य और सुविख्यात सन्यासी है। दिव्य संदेश परिषद सत्संग भवन अलवर आपका मुख्य केन्द्र है। कुण्ड के निकट पाण्डुला ग्राम मे स्व. रामप्रसाद जांगिड बोरीवाला के यहाँ आपका जन्म हुआ।
29. महात्मा अलखबाई
आपका पूर्व नाम भूरि बाई है। आप उच्च कोटि की भक्त है। प्रसिद्ध वैष्णव तीर्थ स्थान नाथद्वारा मे आपका अलख आश्रम है। आप नियमित सत्संग व भजन करती है। अमृत वचन लिखकर प्रकाशित कराये तथा आध्यात्मिक जागरण के लिए सदैव सचेष्ट रहती है।
30. स्वामी ऋत्मानन्द जी अंगिरा
स्वामी ऋत्मानन्द जी अंगिरा: आप पाली जिले के प्रभावशाली विद्वान सन्यासी है। आपका जन्म श्री नाथूराम जी बरडवा के घर ग्राम दुर्गाजी गुड तह. मारवाड जंक्शन जिला पाली मारवाड मे आसोज शुक्ला 13 विक्रम संवत 1957 को हुआ। स्वामी जी ने सन 1920 मे लाहौर से विज्ञान विषय मे स्नातक की शिक्षा ग्रहण की। आप विक्रम संवत 1957 मे व्यवसाय के लिए पाली आकर स्थानीय चौधरियों के बास मे रहने लगे एंव स्थानिय बांगड मिल मे कार्य करने लगे।
स्वामीजी श्री विश्वकर्मा जांगिड समाज सेवा समिति पाली के संस्थापक अध्यक्ष भी रहे। मिठाकली अहमदाबाद आश्रम के श्री शमर्वणानन्दजी सरस्वती सरस्वती के द्वारा आपने सन्यास ग्रहण किया। तभी से आप स्वामी ऋतमानन्द जी के नाम से जाने जाने लगे। आपने सन 1961 मे स्थानिय रेल्वे घुमटी सोजत रोड पाली मे अपनी स्वयं की निजी भूमि पर गुरुकुल विज्ञान आश्रम की स्थापना कर कार्य प्रारम्भ किया। जहां आप विधार्थियों को गुरुकुल शिक्षा सहित वेद संबंधी शिक्षा देते है।
स्वामी जी अपने आश्रम पर आयुर्वेद चिकित्सा के माध्यम से जटिलतम बीमारियो का ईलाज भी करते थे। जहां इनके पास दूर दराज से ईलाज कराने आते थे। आप संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे। स्वामी जी को आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति एम्व नाडी रोग का अच्छा ज्ञान था। इसके साथ ही आप आध्यात्मिक विषय के क्षेत्र मे अद्वितिय विद्वान थे। जिन्हे वेदो से लेकर ब्राह्मण ग्रंथ, दर्शन शास्त्रो उपनिषदो आदि वैदिक साहित्य का अच्छा ज्ञान था। आपको स्नातक धर्म के अलावा ईस्लाम ईसाई बौद्ध जैन व हिख धर्मो की विशेष जानकारी थी। आप स्वामी अग्निवेष के साथ भी रहे। आपका स्वर्गवास दिनांक 26/12/2006 मंगलवार को हुआ व अंतिम संस्कार दिनांक 30/12/2006 को किया गया। स्वामीजी के निधन से समाज को अपूरणीय क्षति हुई है।
31. स्वामी नित्यानन्द जी
स्वामी नित्यानन्द जी : आप पाली जिलान्तर्गत मण्डली खुर्द निवासी सक्रिय आर्योपदेशक है। विश्वकर्मा समाज सेवा समिति के माध्यम से समाज सेवा मे तल्लीन है।
32.परमहंस १०८ श्री महात्मा शोभाराम जी महाराज
परमहंस १०८ श्री महात्मा शोभाराम जी महाराज: आप अत्यन्त उच्च कोटि के त्यागी योग सिद्ध सन्यासी थे। ये अपने समय के सर्वोत्तम समाज सुधारक हुए है । मारवाड मेवाड मे दूर दूर तक आप कि चर्चा आज भी किवदन्तियो के रूप मे सुनी सुनाई जाती है ।आप का जन्म मारवाड राज्य के ठिकाने देवली निकट मांडावाड ग्राम मे भादवा सुदी 14 संवत 1910 को जांगिड ब्राह्मण बलदवा शासनोत्पन्न भक्त डाउरामजी व माता सायराबाई के यहाँ हुआ।
33. स्वामी शुकदेव जी
आपका जन्म बालोतरा के जांगिड परिवार मे हुआ। श्री माधवदासजी से दीक्षा लेकर आप सन्यासी हुए और मोकलसर तहसील सिवाना बाडमेर मे भक्ति करते है।
34. श्री शंभूनाथ जी महाराज
आप जांगिड्वंशी है तथा नापासर जिला बीकानेर के प्रसिद्ध सन्यासी है।
35. श्री स्वामी औंकांरानन्द जी
आपका जन्म श्री तुगनो राम जांगिड के यहाँ हुआ। आप भ्रमणशील सन्त है। रतनगढ जिला चुरू आपकी केन्द्रीय स्थली है।
36. स्वामी पूर्णानाथ जी
आप उच्च कोटि के योगी है। कुलरिया शासन जांगिड्वंशी है। आपकी साधना स्थली भी रतन गढ जिला चुरू जिला है।
37. आचार्य वेदव्रत जी
आप उच्च कोटि के सन्यासी है। आपका जन्म गुडगांवा जिलान्तर्गत ग्राम फ़तेहपुर दडौति मे 15 फ़रवरी 1943 को श्री उमराव सिंह जांगिड के यहां हुआ। गुरुकुल झम्झर मे रहकर आपने व्याकरण साहित्य दर्शन आदिसिद्धान्त विषयो मे अच्छी योग्यता प्राप्त की है। वेदवागीस गुरुकुल चित्तौडगढ से स्वामी वेदानन्द जी से विधामृत पान देकर वेदवागीश उपाधी से अलंकृत हुए। सैकडो शिविरो का आयोजन कर आप नवयुवको के मन बुद्धि एंव शरीर को सुडौल बनाने का प्रशिक्षण दे चुके है सम्प्रति गुलकर्णी जीन्द के आश्रम मे कार्यरत है।
38. महात्मा हीरानन्द जी
आप श्री घूरमल जांगिड के यहाँ 1897 मे जन्मे। 12 वर्ष की उम्र मे आप योग साधना मे लीन है। उच्च कोटि के योगी एंव बालब्रह्मचारी है। कैमरा ग्राम जिला सवाईमाधोपुर की बगीची मे आपका आश्रम है।
39. बालयोगी श्रीकृष्ण चन्द जी ब्राह्मचारी
आपका जन्म अजमेर मे दिनांक 15/1/1959 को श्री नारायण लाल जांगिड तालचडिया के यहाँ हुआ। आपकी माता श्रीमति नाथी बाई धर्मपरायण समाज कार्यक्र्ता है। आपका बचपन कानाम दुर्गा प्रसाद था किन्तु सभी प्यार से राजकुमार कहते थे। प्रारम्भिक शिक्षा के पश्चात आप श्री पंचदश्नामा जूला अखाडा श्री श्री १००८ महामण्डलेश्वर श्री स्वामी अर्जुनपुरी जी महाराज से आपने दीक्षा ली ओर घोर तपस्या की। आपने अनेक सिद्धियाँ प्राप्त की तथा मधुरवाणी से अमृत वर्षा करते है। आप वर्तमान मे तुलसी मानस मन्दिर सप्त सरोवर रोड हरिद्वार मे स्थित आश्रम मे विराजते है।
40. तपोनिष्ठ पंडित श्रीराम आचार्य
इनका जन्म आश्विन कृष्ण त्रयोदशी संवत 20 सितम्बर 1999 को ग्राम आंवल खेडा जनपद आगरा के जांगिड ब्राह्मण परिवार मे हुआ। बाल्यावस्था मे ही अध्यात्म मे गहरी रूची थी। महामना मदनमोहन मालवीयजी द्वारा गायत्री मंत्र की दीक्षा यज्ञोपवित अखण्ड दीपक प्रज्जवलित कर चौबीस वर्ष तक 24-24 लक्ष्य के चौबीस गायत्री महापुरस्चरणो की श्रंखला आरम्भ की। साधनाकाल मे गाय को खिलाए ओर गोबर से छानकर निकाले गये संस्कारित जौ की रोट व छाछ पर रहे। कुण्डीलिनी तथा पंचाग्नी विधा की सिद्ध साधना इस बीच पूरी हुई। किशोरावस्था से ही स्वतंत्रता संग्राम मे सक्रीय रहे।
वन्दनीय माता जी भगवती देवी का 1943 मे उनका जीवन प्रवेश हुआ। जिनका अपने पति को उग्र तपश्चर्या मे पूर्ण योगदान रहा। नारी जागरण कार्यक्रम का बंदनिया माता जी द्वारा सफ़ल संचालन किया गया। सन 1958 मे एक विशाल सहत्र कुण्डी गायात्री यज्ञ मथुरा मे सम्पन्न हुआ। जिसमे 20 लाख से अधिक गायत्री महाविधा का वृहद विश्वकोष स्तर का तीन खण्डो मे गायत्री महाविज्ञान प्रकाशित हुआ। युग निर्माण योजना युग शक्ति गायत्री महाविज्ञान प्रकाशित हुआ। युग निर्माण योजना युग शक्ति गायत्री पत्रिका का लेखन सम्पाद्न एंव प्रकाशन किया। हिमालय मे उग्र तपश्चार्य शान्तिकुन्ज ब्रह्म वर्चस गायत्री साधको ने भाग लिया।
2400 शक्तिपीठो की स्थापना की जो सभी जाग्रत जीवन्त तीर्थ रूप मे प्रकाशित सक्रिय है। क्रान्ती धर्मी साहित्य का जीवन उत्तरार्ध मे लेखन तथा इक्कीसवी सदी का उज्जवल भविष्य की घोषणा । भविष्य सम्बन्धी सारे कथन अब तक सत्य प्रमाणित हुए है। अनगिनत सज्जनो को जीवनदान दिया है। आने वाले 10 वर्षो तक परिजनो के लिए मार्ग दर्शन हेतु अखण्ड ज्योति पत्रिका का सम्पादन। स्वेच्छा से समाधि लेते हुए 2 जून 1990 गायत्री के दिन माँ गायत्री का नाम उच्चारित करते हुए महाप्रयाण कर गये।
41. सन्त शिरोमणि पूज्यपाद श्री प्रहलाद जी शर्मा(वाणीकर्ता)
सन्त शिरोमणि पूज्यपाद श्री प्रहलाद जी शर्मा( वाणीकर्ता) : आपका जन्म ग्राम बडौदा मे हुआ , पिता की इकलौती सन्तान होने के कारण अधिक लाड प्यार मे रहे। कक्षा चतुर्थ तक ही शिक्षा प्राप्त कर सके । आप पढने के लिए स्कूल तो जाते थे परन्तु स्कूल नही पहुँचकर मार्ग मे महात्मा के आश्रम मे ही रह जाते थे। महात्मा की बडी सेवा की। महात्मा जी की भी आप पर विशेष कृपा थी।
आपको हिन्दी अंग्रेजी उर्दू फ़ारसी आदी कई भाषाओ ज्ञान था। जिसकी वाणी सुनने कई भक्तजन आने लगे। कश्मीर नरेश कर्णसिंह्जी, राज्यपाल सरदार हुकुमचन्द जी, राजस्थान राज्य के अनेक मंत्रीगण राज्याधिकारी व आम जनता आपकी वाणी सुनने को आते ही रहते । प्रश्नकर्ता भक्तो का कार्य भी सिद्ध होता है।
कोटा राजकुमार अक्सर आपके पास आते है। इसके अतिरिक्त जयपुर, जोधपुर, उदयपुर करौली के राज परिवार भी आते थे।विज्ञान मेले के समय एक बार प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी व संजय गांधी ने भी आपकी वाणी सुनी थी। यह इस समाज का परम सौभाग्य है कि आप जैसे उच्च कोटि के सन्त ने जन्म लिया। परन्तु अब तो वासुदेव कुटुम्ब की भावना से दुखी जनो का कष्ट दूर कर प्राणी मात्र की सेवा कर रहे है।
42. स्वामी सुधीर दास जी महाराज
आपका जन्म जोधपुर मे दिनांक 8 सितम्बर 1978 को श्री धनराज जी चोयल के यहां हुआ आपकी माता श्रीमति तुलसी देवी गृहीणी थी। आपका बचपन का नाम सुधीर कुमार था। प्यार से परिवार वाले सुधीर कहते थे। आपने वाणिज्य संकाय मे स्नातक व कम्प्युटर विषय मे ओ.लेवल. की शिक्षा प्राप्त की। आपकी आध्यात्मिक भावना परम पूज्य आशाराम जी बापू के प्रवचन व साहित्य पढकर जागृत हुई। तत्पश्चात आप स्वामी रामसुखदास जी महाराज के सानिध्य मे पधारे और स्वामी रामसुख दास जी महाराज को मन से गुरू मानकर वही उनके सानिध्य वेद भागवत व सत साहित्य का अध्ययन करने लगे। स्वामी रामसुखदास जी महाराज के निर्वाण के पश्चात आप बरसाना जाकर श्री राधा जी के मन्दिर की सेवा व भागवत कथा बांचने लगे।