महाभारत कालीन विश्वकर्मा

त्रयस्टवगिंरस पुत्रा लोके सर्वत्र वोस्ग्रुता:। बृहस्पतिरुतथ्यश्य संवर्तश्च घृत व्रता:॥ मनुष्याश्चोपजीवन्ति यस्य शिल्पं महात्मन:। पूज्यन्ति च यं नित्यं विश्वकर्माणम ॥

दिसम्बर 24, 2024 - 00:55
महाभारत कालीन विश्वकर्मा

महाभारत कालीन विश्वकर्मा.......

महाभारत हिन्दुओं का एक महान धर्म-ग्रन्थ है। यह हमारी संस्कृति और सभ्यता का एक दर्पण है। इस ग्रन्थ ने महर्षि विश्वकर्मा और उसकी सन्तति की यन्त्रकला एवं उनके द्वारा निर्मित प्रलयंकारी अस्त्र-शस्त्रों पर सुन्दर प्रकाश डाला है।
महाभारत कालीन अस्त्र-शस्त्र आधुनिक अणु विज्ञान को भी चुनौती देतें है महाभारत कालीन को यदि हम आधुनिक विज्ञान का जनक भी कहे तो इसमे कोई अत्युक्ति नही होगी अब तो विश्व के वैज्ञानिक इस बात पर विश्वास करने लग गये है।कि महाभारत युद्ध मे अणु द्वारा संचालित अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग किया गया था। महर्षि विश्वकर्मा विज्ञान के प्रथम अविष्कारक और संस्थापक थे। यह अब निर्विवाद सिद्ध हो चुका है।
 वैद ईश्वर कृत है। वेदों का प्रथम ज्ञान क्रमश: वायु अग्रि आदित्य और अंगिरा इन चार ऋषियों को हुआ है। महर्षि विश्वकर्मा अंगिरा ऋषि की वंश परम्परा मे आते है। महाभारत महर्षि विश्वकर्मा के सम्बन्ध मे कहता है-

त्रयस्टवगिंरस पुत्रा लोके सर्वत्र वोस्ग्रुता:।
बृहस्पतिरुतथ्यश्य संवर्तश्च घृत व्रता:॥
मनुष्याश्चोपजीवन्ति यस्य शिल्पं महात्मन:।
पूज्यन्ति च यं नित्यं विश्वकर्माणम ॥

अर्थ- वे सब प्रकार के भूषणों के बनाने वाले और शिल्पियों मे श्रेष्ठ है। उन्होने देवताओं के असंख्य विमान बनाये है। मनुष्य भी महात्मा विश्वकर्मा के शिपक आश्रय ले जीवन निर्वाह करते है और उन अविनाशी विश्वकर्मा की पूजा करते है।
विश्वकर्मा वंश परम्परा मे सूर्य इन्द्र विष्णु आदिअनेक देव आते है। यह वंश उत्तमोतम ब्राह्मण वंश मे आता है। 

त्वष्ट्री तू सवितु भार्या दडंरुप धारिणि असूयत महाभागां सान्तरिक्षेड्विश्वनावुभौ:॥
 द्वादेशैवादोतें: पुत्र शुक्र मुख्या नराधिप तेषामवरजो विष्णुयत्र लोका: प्रतिष्ठित:॥

-आदि पर्व अ. ३६मंत्र ३५ और ३६
अर्थ- त्वष्टा की पुत्री संज्ञा भगवान सूर्य की धर्मपत्नी है। वे परम्प सौभाग्यवती है, उन्होने अश्विनी का रुप धारण कर अन्तरिक्ष मे दोनों अश्विनी कुमारों को जन्म दिया। राजन: सूर्य के इन्द्र आदि बारह पुत्र ही है। उनमे भगवान विष्णु सबसे छोटे है। जिनमे ये सम्पूर्ण लोक प्रतिष्ठित है।
आदि पर्व अ. ७६ मंत्र ५ से ८ तक मे वर्णित है- एक समय चराचर प्राणियों सहित समस्त त्रिलोकी के ऎश्वर्य के लिये देवताओं और असुरों मे परस्पर बडा भारी संघर्ष हुआ। इसमे विजयी पाने की इच्छा से देवताओं ने अंगिरा मुनि के पुत्र बृहस्पति को पुरोहित के पद पर वरण और दैत्यों ने शुक्राचार्य को पुरोहित बनाया।
वे दोनों ब्राह्मण सदा आपस मे लाग डाट रखते थे। देवताओं ने उस युद्ध मे आये हुए। जिन दानवों को मारा था। उन्हे शुक्राचार्य ने अपनी संजीवनी क्रिया के बल से पुन: जीवित कर दिया अत: दानव पुन: उठकर देवताओं से युद्ध करने लगे।
आदि पूर्व अ. ७६ मंत्र ११ से १३ मे आगे वर्णित है- इससे देवता शुक्रछाया के भय से उद्विग्र हो उस समय बृहस्पति के ज्येष्ठ पुत्र कच के पास जाकर बोले हे सुब्रह्मन! हम आपके सेवक है। अत: हमे अपनाईये औए हमारी उत्तम सहायता कीजिये। उसे शीघ्र सोखकर यहां ले आइये । इसमे आप हम देवताओं के साथ यज्ञ मे भाग प्राप्त कर सकेगें। राजा वृषपर्वा के समीप आपको प्रियवर शुक्राचार्य के दर्शन हो सकेंगे।
महर्षि विश्वकर्मा के सुप्रसिद्ध नाम पर विश्वकर्मा वंश परम्परा चली। शिल्प और विज्ञान कला मे निपुण पुरुष ही विश्वकर्मा के नाम से सम्बोधित होते थे। महाभारत काल मे विश्वकर्मा ने विज्ञान को उच्चतम शिखर पर आसीन कुया।
आधुनिक युग मे दूसरे लोक से आये तश्तरी सरीखे यानो की अडी चर्चा है।महाभारत मे उसका वर्णन किस प्रकार है।

युष्मानेते वहिष्तन्ति रथा: पंच हिरण्म्त्रा:।
उच्चै : सन्त: प्रकाशनते ज्वलन्तोअग्रि शिखा इव:॥

अर्थ-ययाति बोले ऊपर आकाश मे स्थित प्रज्वलित अग्रि की लपटों के समान जो पांच स्वर्णमय रथ प्रकाशित हो रहे है ये आप लोगों को स्वर्ग मे ले जायेगें दुर्धर्षवीर अर्जुन ने महाभारत मे जिस अस्त्र-शस्त्र का प्रदर्शन किया, वह आधुनिक विज्ञान के लिए एक महान वैज्ञानिक रहस्य है। महाभारत कहता है-

तस्मिन प्रभुदिते रंगे कथचित प्रत्युपस्थिते।
 दर्शयामास बीभत्सरा चार्वा या स्रलाघवम॥