पंचशिल्प संशोधन:
पंचशिल्प संशोधन:
विश्वब्राह्मण कुल के पंच गोत्रर्षियों ने पंचशिल्पों का शोध किया। इनसे देश मे सुख शान्ति और ऎश्वर्य बढ गया।
सानग (मनु) महर्षि लोहशिल्पी था। कृषि के लिए उपयुक्त सब्बल किदाली हल चाकू किवाड ताला खडग अत्यादि को उसने प्रथम संशोधन करके रचा था। उसके पहले ये सब नही थे।
अहभून (त्वष्टा) कास्यं शिल्पी था। उसने पीतल और तांबे का बर्तन मन्दिरो का घण्टा पीतल का थाल जलपात्र आदियों को बनाया था। यह आयुर्वेद विधा मे बुद्धिमान था। वह ज्योतिषज्ञ था। खगोल शास्त्र(सूर्य चन्द्र ग्रहों का ज्ञान) का भी ज्ञाता था।
प्रत्न(शिल्पी) महर्षि शिला शिल्पी था। मन्दिर महक शिला और दंतों मे मूर्ति निर्माण करने मे महा बुद्धिमान था। सुपर्ण (देवज्ञ या विश्वज्ञ) सोना चांदी का काम करने वाला शिल्पी था। उसने सोना-चाँदी से आभूषण सिहांसन इत्यादि का निर्मण करने का विधान अनुसंधान किया था। मन्दिरों के अन्दर चित्र रचने का काम उसका ही था।
लौहशिल्प : करीब साठ हजार साल के पीछे वेदकाल आगे उपनिषद पुराण इतिहासकाल इन सब कालो मे अलग-अलग- धातुओं के चित्र विचित्र यन्त्र तथा शिल्पों को सोनग गौत्र के शिल्पी करते आये है विमान जहाज दूरदर्शन जैसे यन्त्र घडी आदि के निर्माण करने का उल्लेख पुराणोतिहास और शिल्पशास्त्रों मे है।
दारुशिल्प : अति प्राचीन काल के दारुशिल्प अब नही रहे है।इतिहास काल के मन्दिरों के द्वार आदि महलो के दरवाजे स्तम्भ तथा अमीरों के पुराने घ्रो के द्वार आदिमे विशेषत-फूल बेल पशु पक्षी के शिल्प अब भी दिखाई पड्ते है। सिहांसन नाव रहट रथ डोली अत्यादि भी देखने को मिलते है। कास्यं शिल्प :- करीब पाँच हजार साल पहले कास्यं से प्रतिमा और बर्तनों को बनाते थे। इस काम को विश्वकर्मा ब्राह्मण किलज ही करते थे। हजारों मन्दिरों मे निर्मित पंचलौह(पाँच धातु)की देवमूर्तियाँ बुद्ध महावीर की मूर्तियाँ विजयनगर तथा चोल काल के विग्रह घण्टा आदि पूजा उपकरण-ये सब इन शिल्पियों की अदभूत प्रतिभा को बताते है।
शिलाशिल्प :- हिमालय के केदारनाथ बद्रीनाथ मन्दिरोंके नाम सब जानते थे कांशी से कन्याकुमारी तक हजारों मन्दिर है। वहाँ सहस्त्र संख्या मे प्रतिमाएं है। कर्नाटक के बेलरु हव्वेबीडु सोमनाथपुर शिल्पकला के लिए लोक प्रसिद्ध है। वहाँ पत्थर की नवनाते के जैसे काटकर हजारों प्रतिमाओं को बनाया है। बेलूर की शिला बालिकाएं तो भूमि पर आयी हुई अप्सराएं है। उतना ही सुन्दर खजुराहो भुवनेश्वर, कोणार्क महाबलिपुर इन सब मे कई मन्दिर है ये सब विश्वकर्मा ब्राह्मण शिल्पियों द्वारा निर्माण किये हये है पर यह विचार अनेकों को मालूम नही है।
आगम शास्त्रों का कहना है कि देवस्थान देवप्रतिमाओं को विश्वकर्मा ब्राह्मण शिल्पियों को ही करना चाहिए।
स्वर्ण शिल्प: सोना-चाँदी से आभरण और प्रतिमाओं को प्राचीन काल से विश्वब्राह्मण कुल के देवज्ञ (विश्वज्ञ) शिल्पी करते आये थे सिहांसन राजाओं के खडग तोलाख रुपयों से अधिक कीमत के है। मैसूर राजा के सोने के सिहांसन का मूल्य कोटि रुपयो से भी अधिक कहा जाता है।
सोने-चाँदी मे अदभूत सुन्दर काम करने वाले स्त्री-पुरुषों को जुडाने हेतु पवित्र मंगलसूत्र को रचने वाले ये आज भी उन्हे रचते रहे है,
जो विश्वकर्मा ब्राह्मण वंशज है।