विश्वकर्मा वेदो में

विश्वकर्मा वेदो में

दिसम्बर 24, 2024 - 00:10
विश्वकर्मा वेदो में

सामवेद के प्रमाण:

१. ओं स पूर्व्या महीनां वेन: क्रतुभि रानजे...............साम। अं४/मंत्र४
भावार्थ- ज्ञान कर्म द्वारा सर्व कार्य सिद्ध करने वाले पूज्य मनु महाराज सब उत्तम कार्य मानव कल्याण हित करें उत्तम कर्मों द्वारा ही सर्वज्ञ परमात्मा की प्राप्ति होती है।
२. ओं पुरा भिन्दुयुवा............साम अं४/मंत्र८
भावार्थ- मिले हुए घने पदार्थों को छिन्न-भिन्न करने वाला तथा अपने गुणों से पदार्थो का मेल कराने वाला सूर्य की किरण के समान अस्त्रों और शस्त्रों का निर्माण करने वाला विश्वकर्मा अत्यन्त प्रशंसनीय है।
३. ओं पुमान सोम जागृत्वख्या.............सामं५/ंम ५/ ९
भावार्थ- हे बिद्धिमानों \ मै बुद्धिमान अंगिरा! तुम सबसे बढ्कर ज्ञानी हो आप पवित्र है, और वरण योग्य है। आप शान्त रस युक्र हो, सुखद ज्ञान हमे प्रदान कराईये जिससे सुख की प्राप्ति हो।
४. ओं त्वामग्रे अंगिरा.............साम अं५/ं,मंत्र२
भावार्थ- हे परमेश्वर अंगिरा जैसे विद्वान और ज्ञानी लोग प्रत्येक द्रव्य मे ध्यान से अन्वेषण कर आप की खोज करते है और अन्वेषण किये हुये तू आत्मबल को उत्पन्न करता है। ज्ञानी लोग तुझे सबका रक्षक कहते है।

अथर्ववेद मे विश्वकर्मा :-   

१. ओस न: पिता जनिता स उत.........अवर्वखण्ड २/सुक्त/मंत्र३
भावार्थ- हे भुवन औत्र विश्वकर्मा ! आप संसार के प्रिय और बन्धु हो आप ही नामकरण संस्कार करने मे चतुर हो। आपके सत्संग से आनन्द और सुख की प्राप्ति होती है।
२. ओंय भक्ष्य्न्तो न वसुन्याट.उत्र्ष काण्ड २/ सूक्त ३५/मंत्र
भावार्थ- जो स्वार्थी मनुष्य अपना पेट भरना जानते है और जो धन एकत्र करके उपकार नही करते, उनकी दशा शोचनीय होती है। कर्म करने मे कुशल विज्ञान नेता भगवान विश्वकर्मा अपने शिल्प के द्वारा संसार का उपकार करते है तथा कुसंग से बचने का उपदेश देते है।
३. ओं वे धीक्यो रथकरा कमीरा ये भनीषिण:।..........अथर्व ३/४/८/
भावार्थ सब मनुष्यों और विशेषकर राजा लोगों को चाहिये कि भूमिरथ आकाशरथ आदि के बनाने वाले और अन्य शिल्पकर्मी विश्वकर्मा चतुर विद्वानों का सत्कार करते रहें, जिससे अनेक व्यापारोंसेसंसार मे उन्नति होवे।
४. ओं यस्यां वेदि परिगृहणन्ति भूस्या यत्या यज्ञ .अथर्वकाण्ड १२/सूक्त १/मंत्र
भावार्थ-जिस भूमि पर रथ चलते है जैसे शिल्पी विश्वकर्मा ने भूमि पर ऊँचे-ऊँचे स्तम्भ बनाये वह बढ्ती हुई भूमि हमे बढाती रहे तथा अन्न धन प्रदान करती रही।
५. ओं येन सिन्धु महरपो रवां इव प्रचोदय ..............अबर्व काण्ड २०/सूक्त ६३ /मंत्र
भावार्थ- भू पर रथ चलते है जैसे शिल्पी सागर पार लगातें। वही सत्य पथ हमे चलाओं, यही मांगते यही मानते। हे ईश्वर !जिस प्रकार शिल्पी लोग पृथ्वी पर और सागर मे रथ चलाते है और सत्पथ का अनुसरण करते है वही सत्य का मार्ग हमे दिखाओं जिससे हमारा कल्याण हो जाये।


यजुर्वेद द्वारा प्रमाण

१. ओं सा विश्वाय: सा विश्वकर्मा स विश्वधाया: इन्द्र्स्य त्वा भाग सोमेनात नच्मि विष्णो हव्य रक्ष ॥- यजुर्वेद अं१/मंत्र४
भावार्थ- हे ईश्वर १ आप जिस वाणी को धारण करते है, वह सत्यवाणी विधा और आयु कोदेने वाली है विधिवत यज्ञ को रचने वाले विश्वकर्मा जैसे विद्वान क्रिया कुशल और परोपकारी मनुष्य धर्म को जानकर मिक्ष एवं सम्पर्क साधनों से इस और परलोक के सुख को प्राप्त होते है।
2. ओ इन्द्र घोषत्वा वसुभ ............. यजु।
भावार्थ: - भगवान विश्वकर्मा कहते है, कि जिस प्रकार मै शब्द अर्थ और विधुत आदि से यज्ञ को सिद्ध करता हूँ उसी प्रकार आप भी ब्रह्मचर्य युक्त हो उत्तम विधा के द्वारा कल्याण हेतु वर्ते।
4. ओं परमेष्ठ्चभिधीरा: .........यजु।- अं ८/मं५४
भावार्थ- हे गृहस्थे! यदि तुमने वेदो के ज्ञाता और शिल्प विधा मे निपुण शुभ कर्म करने वाले विश्वकर्मा जी को अपना सभापति चुना तो प्राप्त सनातन सत्य को प्राप्त कर सुखद सदगति तो प्राप्त होकर सुख के भागी होगें
5. ओं अग्ने अंगिरा शं ते .........यजु। -अं १२/ मं८
भावार्थ- हे शिल्प और पदार्थ विधा को जानने वाले महर्षि अंगिरा आप हजारों प्रकार की प्रवृति से विधाओं का प्रकाश कर सब प्राणियों के लिए लक्ष्मी और सुख प्रदान करायें
6. ओं सबोधि सूरर्मधवा ...................यजु- अं१२/मं/४३
भावार्थ- जो मनुष्य ब्रह्मचर्य के साथ जितेन्द्रिय हो द्वेष छोडकर धर्मानुसार उपदेश कर विश्वकर्मा के समान सम्पूर्ण सत्य और असत्य को जानने और उपदेश देने के योग्य होते है।
7. ओं ध्रुवासि धरुणास्तृता विश्वकर्म्णा..........यजु। -अं१२मं/१६
भावार्थ- शिल्प और विज्ञान के वेता भगवान विश्वकर्मा उपदेश देते हुए कहते है कि जैसी राजनीति राजा पढे वैसी ही रानी भी पढे और पवित्रता सभी के व्रत का पालन कर न्याया का पालन करें तथा धर्मानुकुल पित्रो, को उत्पन्न करें
8. ओं अचं दक्षिणा.........विश्वकर्मा यजु अं मं १८
भावार्थ- सब कार्यो का निमित्त वायु के समान विद्वान शिल्प आदि कार्यो मे निपुण विश्वकर्मा विज्ञान युक्त चित्र को ग्रहण कर प्रजा के हित के लिए विचार करता रहे।
९. ओं आदित्यास्तत्व पृष्ठ.........यजुं आ१४/मं५
भावार्थ- भगवान विश्वकस्तात्वा स्त्री को उपदेश करते हुए कहते है कि स्त्री सब शुभ कर्मो से युक्त भुवनादि विज्ञान को जानने वालो मे सन्तानेत्यपि के निर्मित तुम्हे घर की अधिकारिणी स्थापित करता हूँ तुम सदैव धर्म का पालन करती हुई यज्ञादि क्रियाओं द्वारा गृहस्थाश्रम को सदैव स्वर्ग बनाओं।
१०. ओं विश्वकर्मा त्वा सादमत्वन्तरिक्षस्य पृष्ठ.........अं१४/मं१४
भावार्थ- प्राण अपान और व्यान की पुष्टि करने वाले विज्ञान के वेता विश्वकर्मा जी स्त्री को उपदेश करते हुए कहते है कि स्त्री को उचित है कि ब्रह्मचर्याश्रम के साथ विद्वान हो । स्जरीर व आत्मा का बल बढाने के निर्मित अपनी संतान को निरन्तर विज्ञान की शिक्षा देवें
११. ओं अयं दक्षिणा विशनकर्मा तस्य........यजुअं १५/ मं१६
भावार्थ- हे मनुष्यों! वह सब चेष्टारुप कर्मो का हेतु रमणीय रथ आदि यान का निर्माता विश्वकर्मा शत्रु का दमन करने वाले अस्त्रों और शस्त्रो का निर्माण कर आकाश से वज्र प्रहार कर शत्रु का विनाश करता है
१२. ओं नमस्तक्षभ्यों रथकोरभ्यव्श्य वो...........यजु अं १६/१६
भावार्थ- हे मनुष्यों ! विमानादि यानों को बनाने वाले खडग बन्दूक और तोप आद शस्त्र बनाने वाले शिल्पी विश्वकर्मा आप सबका कल्याण करें ऎसे उपकरी शिल्पी सत्कार के योग्य है, हम उन्हे नमस्कार करते है।

 

जैसाकि समाज के विद्वतजन जानते है कि महर्षि अंगिरा जी ने अथर्ववेद की रचना की। अंगिरा के वंशज ही विश्वकर्मा कहलाये। प्राचीन युग मे विश्वकर्मा को ही ब्रह्मा की उपाधि दी जाती थी।
यजु: अध्याय 17 मन्त्र 23 व 24 मे लिखा है-
"वाचस्पति विश्वकर्माणमुते मनो जुयं वाजे अधा हुवेम"
अर्थात विश्वकर्मा जी वेदवाणी के रक्षक और चारों वेदो के ज्ञाता थे वे सब कार्यों मे श्रेष्ठ तथा विद्वान थे |
" विश्वकर्मा हविषा वर्द्देनेन" अर्थात विश्वकर्मा वंशी अपने उत्तम कार्यों को सैदेव प्रजा के हित के लिए करते रहें।
"यो देवाना पुरोहित"  देवताओं के पुरोहित माने जाते थे।
"देवाचार्य महत: धीमत: विश्वकर्मण:" अर्थात विश्वकर्मा जी देवों के आचार्य महान बुद्धिमान तथा सब विधाओं मे निपुण थे।
"तस्यां सभायामीध्यों विश्वकर्मा गुरु भवते" जिस सभा के सभासद ब्रह्मा, विष्णु और महेश होते थे, उस सभा के अध्य्क्ष भी विश्वकर्मा जी होते थे। हमारे चारों वेदों मे विश्वकर्माजी तथा शिल्प के बारे मे पर्याप्त मात्रा मे वर्णन उपलब्ध है-
ऋग्वेद मे प्रमाण 
1.ओर रथं ये चक्र: सुवृत सुचेत विहतरन्तं मनस्परि ध्यया।
तां अन्वस्सय सवनस्य पीतये ओवावांजा ऋभो वेद्यामसि ॥

-ऋग्वेद ४ सृ ३५/मन्त्र२
भावार्थ - हे शिल्पकला मे निपुण बुद्धिमान विश्वकर्मा वंशियों आप शिल्प और के द्वारा उत्तम शिल्प विधा को ग्रहण कीजिए।
 ओ तक्षन रथं सुवृत विदमनापरु कृवष्वसु ऋभवो:॥
- ऋग्वेद अ १६ मंत्र
भावार्थ- जिन लिगो के कर्म अति विवेक पूर्ण विचारों से युक्त होवे वे क्रिया करने मे मेधावी होवें वे बुद्धिमान शिल्पी भवन के ऊपर भवन का निर्माण करते रहे और अपने सूक्ष्म अनुसंधानो द्वारा विमान आदि बना है, जिससे रथ एवं यान का अभाव न होवे।
3. ओं ऋषि विप्र पुरेता जनारनामृभुघीरोशना काव्चेन।
भावार्थ- श्री विश्वकर्मा जी आदि सृष्टि से ही वेदार्थ वक्ता है, और ब्राह्मण है, सभी देवों और जनता का नेतृत्व करने वाले है। पूर्व काल से ही रथ वायुयान एवं आयुधों के सफल रचियता है, तथा इन्द्रियों के रहस्य को जानने वाले है।
४. ओं ये ध्र्र्मानों रथाकारा: कर्मारा ये मनीषिणी:।
उषीस्तीन पर्ण मह्रं त्वं सर्वान कृष्वभि तोजनान॥

ऋग्वेद से भावार्थ- महाराज ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते है किहे ईश्वर !जो बुद्धिमान रथकार और लौह कार्य मे निपुण है, उन सबको हमारे निकट बैठाने की कृपा करें ये विशिष्ट बुद्धियुक्त है। जैसे दाँतों वाले हाथी कोदन्ती कहा जाता है। उसी प्रकार विशेष मेधा बुद्धिवाले शिलकारों को धीमान या विश्वकर्मा कहा जाता है।


5. ऊं त्वंमग्रें ढ्ग्वेद-मण्ड्ल
भावार्थ- शिल्प विधा के ज्ञाता अंगिरा ऋषि जो धर्म का पालन करते हुए ईश्वर की आज्ञा का पालन करते है जिससे उनका आत्मा मे सदविधा का प्रकाश होता है तथा वे उत्तम कार्य का अनुष्ठान करके प्राणिमात्र के लिए सुखदायी होते है।


6.ओंत्व नो अग्रे सनये धनानां।
भावार्थ- मनुष्यों को परमेश्वर की इस पेअकार प्रार्थना करनी चाहिए की है परमेश्वर!कृपा करके हम लोगों मे उत्तम धन देने वाले सब सिद्ध कीजिए, हम लोग उपकार ग्रहण कर सकें।


7.ओं त्रय पवयो मधुनाहने रथे
भावार्थ- योग्य शिल्प तीन चक्र व तीन खम्भो से यान को रचकर एक दिन- रात मे भु-समुद्र और अंतरिक्ष मे तीन-तीन बार जाने की सामर्थ्य रखे।