पुष्पक विमान निर्माण

1.अतुलनीय पुष्पक विमान- बाल्मीकि रामायण मे स्पष्ट लिखा है कि शिल्पाचार्य विश्वकर्मा ने ब्रह्मदेव के लिये दोव्य पुष्पक विमान की रचना की।प्रभास नामक बसु की पत्नी महासती योग सिद्धा श्री देव शिल्पी विश्वकर्मा की माता है। देवताओं के समस्त विमानादि तथा अस्त्र-शस्त्र इन्ही के द्वारा निर्मित है।

दिसम्बर 24, 2022 - 01:06
दिसम्बर 24, 2024 - 01:06

संस्कृत के प्राचीन साहित्य मे विश्वकर्मा निर्मित अनेक विमानों का वर्णन मिलता है।

1.अतुलनीय पुष्पक विमान- बाल्मीकि रामायण मे स्पष्ट लिखा है कि शिल्पाचार्य विश्वकर्मा ने ब्रह्मदेव के लिये दोव्य पुष्पक विमान की रचना की।प्रभास नामक बसु की पत्नी महासती योग सिद्धा श्री देव शिल्पी विश्वकर्मा की माता है। देवताओं के समस्त विमानादि तथा अस्त्र-शस्त्र इन्ही के द्वारा निर्मित है।
लंका की स्वर्ण पुरी द्वारका धाम भगवान जगन्नाथ का छारुक श्री विग्रह इन्होने ही निर्मित किया। इनका नम त्वष्टा है। स्प्प्र्य पत्नी संज्ञा इनकी पुत्री है। इनके पुत्र विश्वरुप ओर वृत हुए सर्वमेघ के द्वारा इन्होने जगत की सृष्टि की ओर आत्म बलिदान करके निर्माण कार्य पूर्ण किया। समस्त शिल्प केये अधिदेवता है।
भगवान राम के लिये सेतु निर्माण करने वाले वानर राज नेल इन्ही के अंश से उत्पन्न हुये थे। हिन्दू शिल्पी अपने कर्म की उन्नति के लिए भाद्रपद की संक्रान्ति को इनकी आराधना करते है। देवताओं के गृहकार उत्तम विमानों मे सबसे अधिक आदर पुष्पक विमान का ही होता था। जिसके निर्माता श्री विश्वकर्मा है। उस पुष्पक विमान का वाल्मीकि रामायण मे बडा विस्तृत वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है।
मेघ के समान ऊंचा सुवर्ण के समान सुन्दर कान्तिवाला पुष्पक भूतल पर बिखरे हुए स्वर्ण के समान जान पडता था। अनेकानेक रत्नों से जडित, भाति-भांति के वृक्षों के फूलों से आच्छादित तथा पुष्पों के पराग से भरे हुए उस पर्वत शिखर के समान शोभा पाता था। विधुन्मालाओं से पूजित मेघ के समान रमणी रत्नों से देदीप्यमान था।
श्रेष्ठ हंसों द्वारा आकाश मे ढाये जाते हुए देखता था। बहुत ही सुन्दर ढंग से उसका मिर्माण किया गया था जो अद्रत शोभा सम्पन्न देखता था। अनेक धातुओं के कारण पर्वत शिखर गृहों और चन्द्रमा के कारण आकाश और अनेक वर्णों से युक्त होने के कारण वह विमान विचित्र शोभा सम्पन्न देखता था।
उस विमान की आधारभूमि सोने और के द्वारा निर्मित कृत्रिम पर्वतमालाओं से पूर्ण बनाई गई थी। वे पर्वत वृक्षों की विस्तृत पंक्तियों से हरे भरे रचे गए थे। वे वृक्ष फूलों के बाहुल्य से व्याप्त बनाए गये थे।तथा पुष्प भी क्र्सर एवं पंखुडियों से पूर्ण निमित्त थे उस विमान मे श्वेत भवन बने हुए थे। विचित्र वन और अद्धत सरोवरोंसे चित्रित किया गया था वह पुष्पक रत्नों की ओरभा से प्रकाशमान था और सब कही भ्रमण करता था।
नाना प्रकार के रत्नों से विचित्रवर्ण के सर्पों का नित्माण किया गया था। अच्छी जाति के घोडों के सुन्दर अंग वाले अश्व भी बनाए गये थे उस वोमान परसुन्दर मुख और मनोहर पंख वाले बहुत से ऎसे विंहगम चित्र निर्मित थे जो साक्षात्कामदेव के सहायक जान पड्ते थे। उनकी पों मूंगे और सुवर्ण के बने फूलों से युक्त थी।तथा उन्होने लीलापूर्वक अपने पंखों को समेट रखा था। जो लक्ष्मी का अभिषेक करते हुए से नियुक्त थे। उनके साथ ही तेजस्विनी लक्ष्मी की प्रतिमा भी विराजमान थी। जिनका उन हाथियों द्वारा अभिषेक हो रहा था। इस प्रकारसुन्दर कंदराओं वाले पर्वत के समान तथा बसंत ऋतु मे सुन्दर कोटरों वाले परम सुगंध युक्त वृक्ष के समानवह विमान बडा मनोहारी था। 
उस विमान की विशेषता थी कि वह समयानुसारछोटा या बडा किया जा सकता था तथा उसमे मन की गति से चलने की क्षमता भी थी। अपने स्वामी की इच्छानुसार उसमे गति होती थी तथा चाहे जितने लोगों को यात्रा करवाने की पूर्ण क्षमता थी। जो आकाश मे स्वामी की इच्छानुसार भ्रमण कर सकता था।
आज के अति वैज्ञानिक कहे जाने वाले युग के बने अति आधुनिक वोमान भी उस पुष्पक विमान की जो श्री विश्वकर्मा द्वारा निर्मित था कोई तुलना नही की जा सकती। ऎसा था वह विमान "पुष्पक विमान:। पुष्पक विमान का परारुप एवं निर्माण विधि ब्रह्मर्षि अंगिरा ने दी औए निर्माण साज-सजा भगवान विश्वकर्मा द्वारा"। जिससे वे शिल्पी कहलाये ।